ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
25
अगली सुबह तड़के ही।
मैं दो कप चाय के साथ बैडरूम में दाखिल हुआ जहाँ संजय बिस्तर पर बेसुध पसरा पड़ा था। पिछली रात संजय फ्लैट में काफी देर से लौटा। करीब 45 मिनट तक वो किसी लड़की से बात कर रहा था। मुझे लगा कि वो शायद यामिनी होगी, लेकिन मैं गलत था। उसने कॉल के आखिर में किसी और का नाम लिया। मैं काफी देर तक इस इन्तजार में था कि उसे अपने लौटने के बारे में बता सकूँ लेकिन मौका मिलने से पहले ही मेरी आँख लग गयी।
मैं उसे जगाता नहीं लेकिन जाने से पहले उसे बताना भी जरूरी था।
‘संजय। गुड मार्निंग।’
‘गुड मार्निंग अंश! कहीं जा रहे हो?’ उसने सर खुजाते हुए विश किया।
‘हाँ, वापस घर। कुछ काम है यहाँ?’
‘नहीं। अभी कोई ऐसा जरूरी काम तो नहीं है। चलो कभी और सही। कुछ और लोगों से मिलवाना था तुम्हें। वैसे एक दो मैगजीन में मेरी बात चल रही है। उनको तुम्हारे स्नैप भेज दूँगा। उन्हें पसन्द आयी तो मैं खुद कॉल कर लूँगा तुमको।’
‘तो मैं जाऊँ?’
‘हाँ, जाओ। वैसे तुम यहाँ रुकते तो तुमको कुछ लोगों से मिलवाना था। दो फैशन डिजाईनर हैं, एक लड़की एड एजेन्सी से है। यहाँ रहते तो कुछ फैशन कैम्पेन अटेन्ड कर लेते। तुम्हारे लिए अच्छा होता। तुमने वापसी के टिकट ले लिये?’
‘हाँ, रिर्जवेशन है।’
‘तो ऐसा करो तुम अभी जाओ, लेकिन तुम मेरे और यामिनी के टॅच में रहना। असल में मैं चाहता हूँ कि तुम उसे रोज कम से कम दो कॉल करो।’ उसने एक कप हाथ में लिया।
‘वो क्यों?’ मैं चौंक गया।
‘अरे! चौंको मत भाई, ऐसे ही। उससे दोस्ती बढ़ाओ, दोस्ती बढ़ाना कोई बुरी बात तो नहीं है न।’
उसने बात सम्हाल ली। मुझे संजय की ये बात बुरी भी लगी और अजीब भी। मैं कभी किसी के दबाव में नहीं रहा था और ना ही मुझे जबरदस्ती एडजस्ट करना आता था।
‘तो कल वो कितनी देर तक यहाँ थी?’ वो जैसे कुछ टटोल रहा था।
‘करीब एक घण्टा।’ और मैं समझने की कोशिश में था कि वो हमें गलत समझ रहा है क्या?
‘गुड! उसने मुझे कुछ भी नहीं बताया।’ उसने अपने आप में मुस्कुराते हुए चाय की एक चुसकी ली।
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