ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘यार बिना चाय कॉफी के तुम ये कैसे खा सकते हो?’
वो सीधा रसोई में गया। वहाँ उसने बडे़ आराम से चाय बनायी। मैं उसे बस चुपचाप देख रहा था। मेरी ही तरह वो भी बड़ा हैरान था और इस बात से खुश भी कि मैंने उस कमरे में हाथ तक नहीं लगाया था। बातों बातों में उसने बताया कि वो हमेशा से ही दरवाजा खटखटाने का आदी है डोर बैल बजाने का नहीं।
संजय के अन्दाज मेरी सोच से कहीं आगे थे। ना जाने क्यों वो इस वक्त वो मेरे साथ था? हमने चाय के साथ वो सारी ब्रेड खत्म की। फिर वो बैडरूम के पास चला गया।
‘अंश। मैं सो सकता हूँ आज रात यहाँ?’
‘संजय वो, जिसका फ्लैट है, वो अभी तक नहीं आया है। मैं कैसे कह सकता हूँ?’
‘प्लीज, प्लीज अंश। मैं इतनी रात को कहाँ जाऊँगा? सोने दो ना प्लीज..।’ उसने मेरा हाथ पकड़कर मिन्नतें शुरू कर दीं।
‘ठीक है। मैं बाहर सोफे पर हूँ, आप सो जाओ।’ मैं बस उससे छुटकारा चाहता था।
‘बाहर क्यों? तुम मेरे बगल में नहीं सो सकते क्या?’
‘नहीं,.. हाँ। लेकिन थोड़ी देर में। मुझे किसी को कॉल करना है।’
‘ओ, गर्लफ्रेन्ड?’
‘नहीं, नहीं घर पर!’
‘ठीक है गुड नाइट।’
अपना चकराता सा सिर लेकर कमरे से बाहर आ गया।
संजय को झेलना मेरे जैसे कम बोलने वाले के लिए मुमकिन नहीं था। मेरी मजबूरी थी कि मैं उसके साथ लगभग पिछले एक घंटे से था। मैंने उस वक्त यामिनी को ही फोन करना ठीक समझा। मैंने उसे संजय और उसके बर्ताव के बारे में बताया।
और ये भी कि वो यहाँ मेरे साथ है। यामिनी मेरी बात पर जितना हँस सकती थी, हँसी।
‘क्या हुआ मैम?’
‘तुम उसे क्या समझ रहे हो? कुछ कहा तो नहीं न उसे? मतलब डाँट वगैरह?’
‘नहीं अब तक तो नहीं। क्यों?’
‘वो फ्लैट उसी का है और वो मालिक है हमारी एजेन्सी का। इसीलिए पूछ रही हूँ कि कुछ कहा तो नहीं न उसे?’
‘नहीं।’
मैं अब तक जिसके साथ था वो एक पागल था और एक ही पल में वो पागल मेरा बॉस बन गया। मैं यामिनी का फोन काटते ही सीधा संजय के पास वापस गया। वो मुझे इस तरह बेवकूफ बनाकर बहुत खुश था।
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