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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

24

रात 9.45 पर।


मेरी भूख अपनी सीमा लाँघ चुकी थी। किचन में ऐसा कुछ भी नहीं था जो मैं पका सकता। साथ ही किसी और का सामान इस्तेमाल करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। काफी देर भूख बर्दाश्त करने के बाद मैं उठकर बाहर चला ही गया। एक दुकान से अपने लिए ब्रेड बटर लेकर लौटा।

मैं पहला निवाला लेने ही वाला था कि मेरा फोन बज उठा।

‘हाँ प्रीती बोलो।’

‘ये मेरी 14 कॉल है। पिछली 13 तुमने मिस कर दी।’

‘सॉरी उस वक्त बात नहीं कर सकता था। अब बताओ क्या बात करनी थी?’

‘मैंने कुछ सुना है तुम्हारे बारे में।’ वो शिकायत कर रही थी।

‘उसमें नया क्या है? तुम तो मेरे बारे में कुछ ना कुछ सुनती ही रहती हो।’

‘कोमल। ये नाम नया है। कौन है ये लड़की?’

‘और तुम कौन हो जो ये सवाल मुझसे कर रही हो?’

उसे एकदम से तो कोई जवाब नहीं मिला लेकिन जल्द ही- ‘मैं दोस्त हूँ तुम्हारी।’

‘वो भी दोस्त ही है।’

‘लेकिन...’ थोड़ी हैरानी के साथ उसने एक विराम लिया ‘वो सिर्फ दोस्त है?’ उसे यकीन नहीं था।

‘हाँ और क्या?’

‘लेकिन समीर ने तो बताया कि...’

‘समीर?’ मैं समझ गया कि ये क्यों पूछ रही है। ‘प्रीती तुम आज भी उस पर यकीन करती हो?’

‘हाँ, मतलब... नहीं। लेकिन.... फिर तुम उसकी इतनी फ्रिक क्यों करते हो?’

‘मैं सिर्फ एक ऐसे इन्सान की मदद कर रहा हूँ जिसने कभी मेरी मदद की थी जब मुझे जरूरत थी।’

‘फ्लर्ट करके?’

‘आए एम नाट फ्लर्टिंग!’ मैंने जोर दिया वो बस मेरी तरफ एट्रेक्ट है। जल्दी उसे ये बात समझ आ जायेगी और जिस दिन उसे ये बात समझ आ गयी मैं उससे दूर चला s में था और हरकतें आधे पागलों जैसी। ये रात यकीनन अच्छी गुजरने वाली थी। मैं दरवाजा बन्द कर उसके पीछे कमरे में चला आया।

‘तो खाना खाया जा रहा है?’ उसकी नजरें ब्रेड बटर पर गयीं। ‘क्या मैं भी खा सकता हूँ?’

‘बिल्कुल।’ लेकिन मेरे बोलने से पहले ही वो रूखा सा निवाला चबा रहा था।

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