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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘बस, मुझे लगा ऐसा, अगर गलत हूँ तो सॉरी सर!’

‘प्लीज कॉल मी संजय! ओनली संजय !’

‘ठीक है, तो संजय आप वहाँ, यामिनी जी के ऑफिस में क्या करते है? यू आर ऑलसो ए मॉडल?’ मैंने पूछा।

‘मैं? तुमको लगता है कि मैं कुछ कर सकता हूँ? बस बैठा रहता हूँ ..लोगों को देखता रहता हूँ। कोई काम है नहीं, सो लोगों के काम में गलतियाँ निकालता हूँ। खैर, ये बेकार की बातें छोड़ो। तुमको किसी के फ्लैट में छोड़ रहा हूँ वहाँ जाकर फ्रैश हो जाना, आराम करना।’

‘किसके फ्लैट में?’ मैंने चौंककर पूछा।

‘है एक पागल!’ इस सवाल पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ‘यामिनी ने सही कहा था तुम्हारे बारे में क्यूट हो और स्मार्ट भी, शॉय हो और प्राउड भी, सिम्पल हो लेकिन स्टाइलिश भी ! ये कॉम्बी मिलना जरा मुश्किल होता है। तुम कर सकते हो बहुत कुछ। हर जगह फिट होने वाली पर्सनैलिटी है तुम्हारी ! और? कितने सीरियस हो मॉडलिंग को लेकर?’

‘पता नहीं, मैंने इसे कैरियर बनाने के बारे में कभी सोचा नहीं था।’

‘और अब, अब सोचते हो?’

‘नो, स्टिल कन्फूज।’

‘क्यों? जितना मैं जानता हूँ तुम्हारे पास वो सब कुछ है जो लाइन के लिए चाहिये, तुम्हें यहीं रहना चाहिये।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दूर उसने चुपचाप गाड़ी चलायी। और फिर- सुना है लड़कियाँ तुम में बड़ी जल्दी इन्ट्रस्टेड हो जाती हैं।

‘आपने कहाँ सुनीं ये सब बातें?’ अब मुझे उस पर हँसी आने लगी थी।

‘वो यामिनी बता रही थी तुम्हारी वॉक के बारे में। और कुछ विनय से सुना। अब ज्यादा सोचो मत! चलो हम पहुँच गये।’ संजय ने कार एक मल्टीप्लैक्स बिल्डिंग की पार्किंग में रोकी। वो आगे चल रहा था और मैं अपना बैग लिये उसके पीछे। जल्द ही हम किसी मल्टिप्लैक्स बिल्डिंग के एक शानदार से फ्लैट में थे।

‘तो अंश। ये वो फ्लैट है, जहाँ आपको अगले कम से कम तीन दिन रुकना है।’

मैं फ्लैट में नजर दौडा ही रहा था कि -

‘और ये लो चाबी। मैं चलता हूँ और कुछ चाहिये हो तो मुझे याद मत करना हेल्प योर सेल्फ। वो जाने लगा।

‘नहीं लेकिन ये फ्लैट है किसका? और कोई रहेगा मेरे साथ?’

‘हाँ बताया था न कि एक पागल है। लेकिन बस तीन दिन झेल लेना उसे। ओके बॉय।’

संजय, एक बेहद खुशमिजाज इन्सान। इसके बारे में अब इतना ही जानता था कि ये यामिनी का दोस्त है। इसके अलावा ये क्या है, कौन है, क्यों है कुछ नहीं समझ आया। इस फ्लैट को देखकर लग रहा था कि बमुमिश्कल ही यहाँ कोई रहता होगा। मैं किसी और के घर में कभी आराम महसूस नहीं करता था लेकिन सफर की थकान थी कि मैंने बस शिमला एक कॉल की ये बताने के लिए कि मैं मुम्बई पहुँच गया हूँ और नहाने के बाद मैं सो गया।

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