ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘तो संजय आप वो नहीं हैं जो दिखाते हैं।’
‘नहीं, असल में मैं वो दिखता नहीं, जो हूँ। थोड़ा फर्क है दोनों में, अगर कोई समझ सके तो।’
‘तो फिर आप हैं क्या?’
‘अभी आराम करो। कुछ दिनों में समझ जाओगे। कम से कम तुम्हें तो समझा ही सकता हूँ।’
संजय जो भी था लेकिन मैं अब उसके साथ उतना घुल मिल नहीं सकता था, जितना मैंने जाने अन्जाने सोच लिया था। जब तक मैं उसके साथ रहा, उसने मुझे बिल्कुल भी महसूस नहीं होने दिया कि मैं कोई गैर हूँ। अगर संजय ने मेरे साथ शुरू से वो बर्ताव न किया होता जो किया, तो मैं उससे दोस्ती कभी न करता। हाँलाकि दोस्ती का हाथ उसी ने मेरी तरफ बढ़ाया था।
अगले ही दिन संजय मुझे स्टूडियो ले गया। वहाँ मैंने उसका अलग चेहरा देखा। अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी में वो जितना मजाकिया था उतना ही संजीदा था अपनी व्यवसायिक जिन्दगी में। उसे अपने आदेश दोहराने की आदत नहीं थी इसलिए उसका स्टाफ एक ही बार में काम पूरा कर देने का आदी था। वहाँ मैंने विनय की हालत भी देखी जो मुँह खोलकर कुछ बोल तक नहीं पाता था।
संजय ने मेरी कुछ बेहतरीन फोटोग्राफर्स से मुलाकात करवायी। मेरा ऑफिशल पोर्टफोलियो तैयार करवाया। उसने मेरे साथ एक कॉन्ट्रेक्ट किया जिसके मुताबिक मैं करीब चार साल के लिए सिर्फ संजय की एजेन्सी के साथ जुड़ गया था। उसे मेरी कामयाबी पर क्यों इतना भरोसा था ये मैं समझ नहीं सका। सारा दिन बस यूँ ही गुजर गया।
अगले दिन मेरा एक शूट प्लान था जो यामिनी के साथ होना तय था।
यामिनी और मेरा एक फोटो शूट हुआ जो कि गौगल्स कम्पनी के लिए था। शूट खत्म होने के बाद हम सब संजय के केबिन में गये, जहाँ यामिनी पहले से ही थी।
वो जगमगहाटें! वो मूव्स! आँखों में चुभती सी तेज रोशनी।
हर एक पोज के बाद मेरा मैक ओवर तय था। मैं एक कठपुतली था फोटोग्राफर के हाथों की। वो जैसे चाहता वैसे, उसी हाल में मुझे खड़ा रहना पड़ता। पलकें झपकाने से पहले भी मुझे वक्त और फोटोग्राफर के मूड का ध्यान रखना पड़ रहा था। सड़क पर लगे उन बड़े-बड़े बैनरों को देखकर कभी ये महसूस ही नहीं हुआ था कि ये काम किसी को दिमागी और जिस्मानी तौर पर थका भी सकता है। किसी के दिन का एक लम्बा वक्त ले सकता है।
आखिर में मैं भी पूरी टीम के साथ कम्प्यूटर पर वो सारी तस्वीरें देख रहा था जिनमें से कुछ चुनिन्दा ही आगे प्रिन्ट होने वाली थीं।
जब हम बाहर निकले तो लगभग शाम ढल चुकी थी।
मैं यामिनी को बॉय कहता उससे पहले ही हमें संजय की कॉल आ गयी। उसने हमें ऊपर अपने केबिन में बुलवाया था।
हम पाँच मिनट में उसके सामने थे।
यामिनी ने पहले सीट ली।
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