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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘क्या, अंश... तुम?’ वो कहते कहते रुक गयी। मुझ पर नाराज होना उस के बस में ही नहीं था।

‘कोमल कॉन्ट यू सी ही इज ड्रन्क ?’

‘तो? तुमको मेरी इतनी चिन्ता क्यों है अंश?’

‘मैं दोस्त हूँ तुम्हारा! मैं तुम्हारी चिन्ता नहीं कर सकता?’

‘नहीं!’ उसने हिम्मत जुटाते हुए कहा

‘वो शराबी कर सकता है?’

‘हाँ!’

‘क्यों?’

‘बिकॉज ही इज माँय बॉयफ्रेन्ड एण्ड ही लव्स मी!’

‘ओ के, तो ठीक है इवन आई लव यू! अब?’

थोड़ी देर को उसे समझ ही नहीं आया कि उसने क्या सुना है और वो क्या कहे? वो चुप रही फिर बेबस-सी आवाज में मुझे समझाने लगी।

‘अंश तुम प्लीज, मुझे जाने दो। मैं ऐसे ही खुश हूँ, इसी तरह। मुझे तुम्हारा प्यार नहीं चाहिये। मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ।’

‘वो मैं तय करूँगा कि तुम क्या हो, क्या नहीं....’

‘देखो अंश, मैं जानती हूँ कि तुम ये इसलिये कर रहे हो ताकि मैं उसके साथ न रहूँ, है ना? ठीक है मैं नहीं रहूँगी लेकिन तुम मुझे ये झूठी उम्मीद मत दो।’

‘तुमको मैं झूठा लगता हूँ? मैंने जो कहा सच कहा। आई लव यू!’

उस रात के बाद मेरी जिन्दगी थोड़ी और बदल गयी। मैंने जबरदस्ती उसे ये सब कह तो दिया लेकिन कभी उसे चाह नहीं सका। मेरी कोशिश बस उसे खुश रखने की थी। मैं ये सब अपने लिए नहीं कर रहा था उस इन्सान के लिए कर रहा था जिसने मेरे और मेरे भले के लिए सोचा। बिना अपनी परवाह किये।

मैं नहीं चाहता था कि कोमल खुद को किसी भी हद तक बर्बाद करे। अजय उसके साथ प्यार की वजह से नहीं था। वो एक ऐसा लड़का था जो कोमल के साथ सब को ये बता देता कि फ्लर्ट का क्या मतलब होता है।

मेरा नाम फिर एक लड़की के साथ जुड़ गया था, बिना वजह के। सबसे बुरी बात ये थी कि सब जानते थे कि ये प्यार नहीं है। मैं, मनोज, समीर, नेहा और तो और, खुद कोमल भी! फिर भी हमारा रिश्ता चल रहा था। कोमल के लिए ये कुछ हद तक प्यार था, मेरे लिए मजबूरी और बाकी सब के लिए, फ्लर्ट!

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