ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
वो खुद को बर्बाद कर रही है शोभा।
उसने असहमति से आँखें बन्द कर लीं। मानों उसे मेरी बातें समझ आ ही नहीं रहीं है।
तो भी क्या? तू चाहता है कि वो भीख माँगे तेरे आगे अपने प्यार की? रोये कि तू उसे चाहे? वो जानती है कि वो तेरे लायक नहीं है! उसने झटके से अपनी कुर्सी छोड़ दी। मैं जड होकर अपनी जगह पर ही बैठा था। डिस्पोजल प्लेट को उसने कूड़ेदान में फेंककर वो मेरे पास आयी और उसने अपना दिल खुद ही तोड़ दिया है अंश। अब वो तेरे पास कभी नहीं आयेगी। शोभा चली गयी।
मेरी उम्मीद से काफी बहादुर निकली कोमल लेकिन बेवकूफ भी।
वो कुछ साबित करना चाहती थी लेकिन भूल गयी कि हम ज्यादातर वही साबित करने की कोशिश करते हैं जो सच नहीं होता। वो गलत राह पर थी जिसपर चलते हुए मैं उसे देख नहीं सका।
मैं भी कैफेट एरिया से बाहर निकल आया।
शिमला की रातें सुन्न कर देने वालीं होती हैं और वो रात सिर्फ ठण्डी ही नहीं बल्कि बारिश की रिमझिम में सराबोर थी।
मैं कोमल का ढूँढता हुआ बाहर आ गया। वो गेट के बगल में एक कोने पर खड़ी थी। अकेली। गुमसुम।
कहाँ जा रही हो?
उसे अन्दाजा नहीं था कि मैं कब उसके पीछे आ खड़ा हुआ। जैसे ही वो पलटी-
तुम? लड़खड़ा सी गयीं।
आराम से! मैंने उसकी बाँह पकड़कर उसे सम्हाला।
मैं अजय के साथ राइड पर जा रही हूँ। उसने खुद को सम्हाले हुए जवाब दिया। काफी सहज होने का दिखावा कर रही थी।
‘उसकी हालत देखी? तुम कहीं नहीं जा रही हो। अन्दर चलो।’ मैंने उसे अन्दर ले जाने के लिए उसका हाथ पकड़ा।
‘अंश वो आता होगा। कोमल ने अपना हाथ झटक दिया लेकिन मैं अभी भी उसके बेहद करीब था। अंश वो ठीक है... और तुम थोड़ा दूर खडे़ रहो मुझसे प्लीज!’
‘क्यों, तुमको परेशानी होती है? चलो अन्दर! अगर वो नालायक आ गया तो हमारा झगड़ा हो जायेगा। फिर अच्छा लगेगा तुम्हें?’
कोमल परेशान होकर मुझे वहाँ से थोड़ा दूर लेकर आ गयी। उसके चेहरे पर थोड़ी देर तक गुस्सा रहा जो जल्द ही दुःख में बदल गया।
‘अंश मैं जान सकती हूँ कि तुम करना क्या चाहते हो?’
‘तुम क्यों उस बेवकूफ के साथ इतनी रात को घूमना चाहती हो?’ मैंने चिढ़कर जवाब पूछा।
‘मन कर रहा है मेरा कि किसी लड़के के साथ रात को घूमने जाऊँ। ओ के? खुश?’
‘ठीक है चलो मेरे साथ। कहाँ चलना है? मैं भी लड़का हूँ!’
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