ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘और तू?’
‘मैं बस अभी आया।’ मैंने मुस्कुराते हुए कोमल की तरफ इशारा किया। ‘मुझे डर है कि सुबह जब हम शिफ्ट खत्म कर बाहर आयेंगे तब भी ये ऐसे ही ऑटो का वेट कर रही होगी।’
कोमल का घर ज्यादा दूर नहीं था। बमुश्किल 10 मिनट में मैं उसे छोड़कर वापस आ सकता था।
मुझे उस पर जोर डालना पड़ा कि वो मेरे साथ चले। वो राजी ही नहीं हो रही थी। आधे से ज्यादा रास्ते वो खामोश रही। जरूर कुछ चल रहा था उसके मन में। मुझे यकीन था।
‘क्या हुआ तुम्हें कोमल?’
‘कुछ नहीं।’
कुछ देर और चुप रही फिर-
‘मेरा घर ज्यादा दूर नहीं है फिर तुम क्यों आ रहे हो मेरे साथ? मैं चली जाती अकेले।’
‘इतनी रात को अकेले कैसे जाने दे सकता हूँ? इट इज नाट सेफ।’
‘तो वो तुम्हारी प्राब्लम नहीं है।’
‘क्यों नहीं है? ये मेरी भी प्राब्लम है।’
‘क्यों है?’ उसने झट से पूछा।
‘बस है। तुम अपना दिमाग ज्यादा मत चलाओ। वैसे ही तबीयत खराब है तुम्हारी और बिगड जायेगी।’ मैंने मजाक में कहा।
‘एक बात पूछनी थी अंश।’
‘क्या?’
‘यू लाइक एनी वन? कोई है तुम्हारी जिन्दगी में?’
‘क्यों? नहीं होगी तो तुम ला दोगी?’
‘हाँ, लेकिन पहले बताओ।’
‘नहीं। मुझे ऐसी कोई बीमारी नहीं है और न मैं पालना चाहता हूँ। वैसे,तुम ये बेकार की बातें क्यों करने लगी हो? लगता है सच में तबीयत ठीक नहीं है तुम्हारी।’
मैंने उसकी बात का कोई सही जवाब नहीं दिया। उसकी बातें, उसका लहजा सब अजीब लग रहा था। पहली बार लगा कि वो मेरे साथ कम्फर्टेबल नहीं है। खैर, मैं उसे छोड़कर वापस सेंटर आ गया।
|