ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
19
अगले सोमवार रात 11.30 बजे।
ये नवम्बर की एक ठण्डी रात थी। मैं और मनोज थोड़ी देर से कॉल सेंटर पहुँचे। हमने पार्किंग में गाड़ी खड़ी की। इसके एक दूसरे अन्धेरे से कोने पर कोमल और शोभा खड़े थे। हम उनके पास गये। वो किसी बात पर बहस कर रही थीं।
कोमल का चेहरा थोड़ा उतरा सा था।
‘क्या चल रहा है?’ मनोज ने बात शुरू की।
‘कुछ नहीं। इसकी तबीयत जरा खराब है। घर वापस जाना है इसे!’ शोभा ने उसे देखते हुए ताना सा मारा।
‘इस वक्त कैब कहाँ मिलेगी?’ मैंने कहा।
‘मैं मैनेज कर लूँगी।’ कोमल ने जवाब दिया और वहाँ से निकल गयी।
जितनी देर में मनोज अपनी गाड़ी पार्क करता उतने में मैंने कोमल से अपने टी एल के पारे की खबर ली। यकीनन वो काफी नाराज होगा। कुछ देर मैं कोमल के साथ ही गेट पर खड़ा रहा। मुझे पता था कि उस वक्त ऑटो मिलने का कोई मलतब ही नहीं है।
‘मुझे नहीं लगता कि इस वक्त कोई ऑटो मिलेगा तुम्हें।’
मुझे जवाब दिये बिना वो ऑटो के लिए यहाँ वहाँ देखती रही। वो बीमार ही बस परेशान लग रही थी। मैं उससे कुछ पूछने वाला था कि-
‘अंश आज हम लॉगइन होंगे भाई?’ मनोज पीछे से चिल्लाया।
मैंने एक बार कोमल की तरफ देखा, फिर मनोज की तरफ। कुछ सोचा और फिर मनोज की तरफ बढ़ गया।
‘फिलहाल तो सिर्फ तू लॉग-इन होने वाला है।’ मैंने उसके हाथ से बाइक की चाबी ली।
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