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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

मुझे नफरत है लड़कियों की इस आदत से! किसी के सामने भी रो पड़ती हैं। जरा सी बात पर आँसू आ जाते हैं इनके। दिखाती हैं कि कितनी कमजोर हैं ये.... कितनी बेचारी! तरस के लायक! किसी हालात का सामना हिम्मत से कर ही नहीं सकतीं।

बाइक के सहारे टिके हम दोनों जिस सड़क के किनारे खड़े थे, उससे से गुजरता हर आदमी हमारी तरफ देख रहा था। या यूँ कह लो कि मुझे घूर रहा था। उन्हें कोमल के आँसुओं की वजह मैं लगा था।

कोमल को चुप कराना जरूरी था लेकिन मेरे पास कुछ था ही नहीं जिसे कहकर मैं उसे चुप करा सकूँ। खुद मेरी हालत भी बुरी ही थी।

‘कोमल खुद को सम्हालो प्लीज। लोग जिस तरह हमें देखते हुए जा रहे हैं मुझे डर है कि कोई आकर पीट ना दे मुझे।’ मेरी आवाज में वाकई घबराहट थी। कोमल मेरी बात पर एक बार मुस्कुरा गयी।

उसने कुछ वक्त लिया सम्हलने में और फिर हम वहाँ से कोमल के घर के लिए चल दिये। मैं उसे छोड़ने जा रहा था। जैसे ही हम उसके गेट पर रुके।

‘कान्ग्रेट्स!’ उसका गेट लाक था और घर भी।

‘उप्स! सॉरी मैं बिल्कुल भूल गयी थी कि मेरे घर वाले कहीं बाहर गये हैं।’

‘कब तक लौटेंगे?’

‘शाम तक।’

‘और तुम्हारे पास दूसरी चाबी है?’

उसने बेचारगी के साथ ना में सिर हिला दिया।

थोड़ी देर तो सूझा ही नहीं कि क्या किया जाये, फिर-

‘एक अच्छी सी मूवी लगी है पास के हाँल में।’ उसने झेपतें हुए कहा।

वो अपना जन्मदिन गेट के बाहर अपने घरवालों का इन्तजार करते हुए जाया नहीं करना चाहती थी। मेरे साथ मूवी देख लेना इससे बेहतर ऑप्शन था। मैं भी मान गया।

कुछ आधे घण्टे बाद।

पहली बार मैं किसी लड़की के साथ अकेले मूवी देख रहा था। फिल्म देख लेने के बाद हमने साथ में लंच भी लिया। वैसे कोमल के साथ मुझे भी अच्छा ही लगता था लेकिन वो जरूरत से ज्यादा ही खुश लगी मुझे।

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