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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘आई नो अंश! आई अन्डरस्टैण्ड योर प्राब्लम! लेकिन यहाँ बात मेरी रिस्पेक्ट की है। आपने तो ऐसे बहाना बनाया जैसे मैं कोई गिरी हुई लड़की हूँ। अगर आप सीधे-सीधे कह देते कि आपको इन मोहतरमा के साथ जाना है तो मैं आपको पूछती तक नहीं। आपको इस तरह झूठ नहीं बोलना चाहिये था! अगर मुझे ले जाने में आपको परेशानी थी तो इस बिच को कैसे बैठा सकते हो आप?’

कोमल को जवाब देना नहीं आता था और नेहा को इतने गुस्से में देखकर उससे कुछ कहा भी नहीं गया, लेकिन नेहा की बात मुझे चुभ गयी। उसके बाद मेरा हाथ ही उठा उसकी बातों का जवाब देने के लिए और वो थप्पड़ खाकर ही चुप हुई। मेरा गुस्सा अभी शान्त नहीं हुआ था। मैंने नेहा की सारी गलतफहमियाँ दूर कर दी।

‘नेहा तुम माफी माँगो कोमल से! वो अपनी खुशी से नहीं बैठी थी मेरे साथ, उसे मैंने कहा था! मैं किसको अपने साथ लेकर जाऊँगा ये तुम तय नहीं करोगी! तुम्हारे बाप की प्रापर्टी नहीं हूँ मैं! और रही बात तुमको अपने साथ लेकर जाने की, तो मैं ये ही कहूँगा कि आज के बाद मेरे आस-पास फटकना भी मत। तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा!’

नेहा रोने लगी।

सबका मूड बुरी तरह खराब हो गया था। सारा प्लान चौपट हो गया।

मनोज ने समीर के साथ बाकी सबको वापस चलने के लिए कहा। एक के बाद एक सब ने गाड़ी में अपनी अपनी जगह ले ली। कोमल छोटा सा मुँह लिये किसी दुविधा में खड़ी थी। शोभा उसे साथ चलने के लिए मना रही थी लेकिन मैंने कोमल को रोक लिया। नेहा का कोई भरोसा नहीं था, वो फिर शुरू हो सकती थी।

समीर अपनी गाड़ी से धूल उड़ाता हुआ चला गया।

कोमल और मैं उन सब के जाने के थोड़ी देर बाद वहाँ से निकले। कोमल के लिए दिल टूट सा रहा था मेरा। उसका एक खास दिन खराब हो रहा था। मेरे पीछे बैठी काफी देर तक अपने आँसू सम्हालने की कोशिश करती रही लेकिन अचानक ही रो पड़ी।

मैंने बाइक एक किनारे खड़ी की। उसका चेहरा लाल पड़ता जा रहा था।

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