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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

17

शुक्रवार : सुबह 9.30 बजे कॉल सेन्टर के गेट के बाहर।


कोमल का जन्म दिन था और हम सब दोस्तों ने मिलकर एक पिकनिक प्लान की। मनोज अपनी बाइक पर और मैं रात भर की नींद और थकान ने मुझे बोझिल सा एक पेड़ के सहारे टिका बाकी दोस्तों का इन्तजार कर रहा था। रात को ये जगह हमारे लिए एक जगह थी जहाँ हम कमाई के लिए आते थे और दिन में कोई मीटिंग प्वाइन्ट। तय ये हुआ था कि सब लोग 9 बजे तक हर हाल में यहाँ जमा हो जायेंगे लेकिन अब तक हम दोनों के अलावा किसी के आने की आहट तक नहीं थी।

‘व्हाट द हैल!’ मनोज बडबड़ाया।

‘तुझे याद है ना कि तेरी बाइक मैं चलाऊँगा?’ मैंने उसे याद दिलाया जो पिछली रात हम दोनों के बीच तय हुआ था।

‘हाँ याद है। पहले उन्हें आने तो दे।’ उसने मोबाइल पर समीर का नम्बर लगाते हुए कहा। ‘और ये कमीना फोन क्यों नहीं उठा रहा है?’ मनोज खीज गया।

‘आ गये।’ मैंने आती हुई सफेद आई-10 की तरफ इशारा किया।

समीर और नेहा गाड़ी से उतरे।

आते ही नेहा ने जाकर मनोज को गले लगा लिया और-

‘हॉय मनोज।’ जरूरत से ज्यादा ही खुला उसका मिजाज हमेशा ही समीर और उसके बीच बहस का मुद्दा था लेकिन नेहा ने कभी परवाह नहीं की।

कुछ पाँच मिनटों में कोमल भी आ पहुँची और उसकी सहेली शोभा भी आ पहुँची। उसे बधाई देने के बाद हम सब वहाँ से चलने लगे।

मैंने मनोज की बाइक सम्हाली।

‘तू हमारे साथ नहीं आ रहा?’ समीर ने पूछा

‘नहीं, थोड़ा कन्जस्टड हो जायेगा।’ मैंने बाइक स्टार्ट कर दी।

समीर को टालने की एक ही वजह थी- नेहा। समीर के साथ अगली सीट पर बैठे हुए भी उसकी नजरें मुझ पर टिकीं थीं। उसे देखकर ही लग रहा था कि वो कुछ प्लान कर रही है। जैसे ही मैंने बाइक स्टार्ट की-

‘अंश!’ उसने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया।

मैं जानता था! जानता था कि वो कुछ ना कुछ तो करेगी ही। मेरे माथे पर बल पड़ गये।

‘यहाँ कोई परेशानी है क्या?’ समीर ने उसका हाथ पकड़ा।

‘हाँ, मुझे बन्द गाड़ी में घुटन होती है। आई फील सफोकेशन एण्ड वोमिटिंग काईंड वॉफ!’

‘लेकिन नेहा मेरा हाथ साफ नहीं है बाइक पर। मुझे नहीं लगता कि मैं तुमको आराम से ले जा पाऊँगा, इट विल बी बेटर इफ यू गो विद दैम!’ मैंने बहाना बनाया।

समीर और मेरे कहने पर वो जाकर गाड़ी में बैठ तो गयी लेकिन उसकी शक्ल बता रही थी कि वो वहाँ तसल्ली से नहीं है। अगर नेहा मेरे साथ आकर बैठ जाती तो एक तरफ मेरा मूड खराब हो जाता और दूसरी तरफ समीर का।

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