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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘मैं तो करूँगा यार, बात करने में क्या जाता है? वैसे उसने सच में चाय वाले को ऑफर किया था?’

‘नहीं लेकिन उसे देखकर इतराती रहती है। और अंश को तो...।’ मनोज उसे उकसाने लगा

‘अंश को क्या?’ समीर हड़बड़ा गया।

‘मुझे नहीं लगता वो इसका पीछा छोड़ने वाली है, जब तक ये यहाँ है।’

‘शिट् यार फिर से नहीं!’ सिगरेट एक तरफ फेंक दी। ‘ऐसा भी दोस्त नहीं होना चाहिये। इसके साथ रहे तो हमारी शादी भी नहीं हो पायेगी कभी। इस साले को तो हम अपनी बारात में भी नहीं ले जा सकते, पता चल रहा कि दुल्हन ने इसे माला पहना दी।’

नेहा को छोड़कर हमारी शिफ्ट में तीन और लड़कियाँ थी लेकिन वो काफी अच्छी थी। उन्होंने कभी हमसे आफिशली दोस्ती नहीं की फिर भी हमारी अच्छी बातचीत थी। हम सब के बीच कोई बनावट, कोई दिखावट नहीं थी।

उनमें से एक का नाम कोमल था- एक पढ़ाकू, समझदार और सभ्य सी लड़की। उसका सपना था कि वो एच आर प्राफेशनल बने जिसके लिए वो एम बी ए की पढ़ाई भी कर रही थी। कॉल सेन्टर की ये जॉब उसकी फीस का साधन थी।

हमारा एक छोटा सा ग्रुप बन गया था, जो बहुत अच्छा था। मेरी कन्वेनसिंग स्किल अच्छी नहीं थी और जल्दी से कोई सेल नहीं दे पाता था तो कोमल अपनी कई सेल्स मुझे दे देती थी। उस समय तक जितनी भी लड़कियों को मैं जानता था उनमें सबसे अच्छा तालमेल मेरा कोमल से ही बन पाया था।

मेरी जिन्दगी काफी हद तक बदल चुकी थी और साथ ही मेरा स्वभाव भी। अपनी खुद की कमाई और खर्च करने का अपना ही तरीका। इस तनख्वाह का बड़ा हिस्सा मैं घर पर देता तो भी मेरे पास अपने लिए ठीक ठाक सी रकम बच जाती थी।

हम सब दोस्त मिलकर खूब मजे करते थे। राइड्स, मूवीस, पिकनिक ये सब लगभग हर हफ्ते ही होता था लेकिन हर गुलाब के साथ कांटे होना स्वभाविक है।

समीर के चलते नेहा को भी हमें अपने साथ लेकर जाना पड़ता था, लेकिन वो जहाँ भी जाती थी हमेशा मेरे आस-पास ही मंडराती रहती। समीर को बुरा ना लगे ये सोचकर मैं हमेशा उससे कटता था। वैसे नेहा हमेशा ही सिरदर्द थी, लेकिन एक दिन उसने वाकई हद कर दी।

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