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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

16

कुछ दिन बाद। रात 1 बजे।


मैं और मनोज रात के खाने के बाद कॉल सेन्टर की अन्धेरी सी छत के एक कोने में खड़े सिगरेट पी रहे थे। समीर भी कुछ ही देर में यहाँ पहुँचने वाला था। पहले ही दिन सेंटर में आकर खुश हो गया। उसे एक लड़की ने खुद से आकर फ्रेन्डशिप ऑफर की। समीर हमें पूरा वृतान्त सुनाना चाहता था।

‘हे गॉयस!’ सीढ़ियों को बड़ी खुशी और बड़ी तेजी से लाँघता हुआ वो हमारे सामने आ गया। मैं जानता था कि अब वो बोलना शुरू करेगा। उसकी पकाऊँ बातों से बचा रहूँ इसलिए मैं उन दोनों के पास टहलते हुए एक किनारे चला गया। मैं उनकी बातें सिर्फ सुन रहा था। मनोज ही उस वक्त उसे बर्दाश्त कर सकता था क्योंकि उसे पता था कि क्या हुआ है।

वो तो खुद समीर की खिचांई करने का मौका ढूँढ़ रहा था।

‘तो समीर जी क्या नाम है आपकी उस नयी फ्रेंड का?’ मनोज ने अपनी हँसी सम्हालते हुए पूछा।

‘नेहा!’ उसने मनोज के हाथ से सिगरेट की डिब्बी ली और उसमें से एक सिगरेट निकालते हुए- ‘अच्छी है। तुम तो जानते होगे उसे। तुम लोग तो पहले से यहाँ हो न।’ सिगरेट सुलगा ली।

ना चाहते हुए भी मुझे समीर की बात पर हँसी आ गयी।

हम सच में उस लड़की को जानते थे। उसने मुझे मेरे पहले ही दिन से लाइन देनी शुरू की। अगले ही दिन ऑफर किया और मेरी तरफ से कोई सटिस्फेक्टरी जवाब ना मिलने पर उसके तीसरे दिन मनोज को ही ऑफर कर दिया।

समीर को मेरी हँसी पर शक हो गया।

‘ये अंश क्यों खुश हो रहा है? अबे क्या हुआ तुझे?’ उसने खीजकर पूछा।

दूसरी तरफ मनोज की हँसी भी थम नहीं रही थी।

‘अंश से क्या पूछ रहा है मुझसे पूछ! वो लड़की ठीक नहीं है, बेकार है।’ मनोज ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।

‘ना ना, मैं नहीं मानता यार। कितनी मासूम-सी है। छोटी-सी प्यारी सी।’ उसने जोर दिया।

‘हाँ, तेरी उस प्यारी ने पहले अंश को ऑफर मारा, फिर मुझे, अब तुझे ! और एक बात कहूँ कि उसने आज तक किसी को नहीं बक्शा। चाय वाले तक को नहीं। बाकी तुझे पसन्द है तो कर ले दोस्ती।’ मनोज ने कन्धे उचका लिये।

समीर के चेहरे पर शक साफ दिख रहा था लेकिन ये बात उसे ज्यादा परेशान ना कर सकी।

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