ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
उसकी बातें और मुस्कुराहट उसके सोच की दिशा जाहिर कर रही थी जो कितनी दूर तक जा सकती है मैं हमेशा से ही जानता था। कभी कभी तरस आता था उस पर!
‘हाँ सब कुछ बहुत अच्छा है लेकिन मैं वहाँ सिर्फ पैसे कमाने जाता हूँ। तू ज्वाईन करना चाहेगा?’
‘नहीं मैं तो बस पूछ रहा था। अभी कुछ समय में कालेज शुरू हो जायेगा फिर पढ़ाई और फिर कहाँ वक्त मिलेगा जिन्दगी जीने का?’
‘ठीक है, और आजकल क्या कर रहा है?’
‘सोच रहा हूँ कि आगे क्या करूँ। मैं कुछ प्रोफेशनल करना चाहता हूँ।’ उसने सोचते हुए कहा।
‘तो बिना मार्कशीट के तुझे किसी कालेज में दाखिला मिल जायेगा क्या? हमारे साथ चल, बेकार घूमकर क्या करेगा।’ मैंने सलाह दी।
‘हाँ चल, देखता हूँ।’ कुछ सेकेण्ड सोचकर- ‘वैसे वहाँ अच्छा लगता होगा न? कितना स्टाफ है?’ समीर अपने ट्रैक पर आने लगा।
‘देख मैंने कभी गिना नहीं और जिस स्टाफ की बात तू कर रहा है वहाँ बहुत है, हाँ लेकिन मेरी शिफ्ट में कम।’
‘वो क्यों?’
‘क्योंकि लड़कियाँ रात को आने में कम्फर्टेबल नहीं होती और हम लड़कों को ही रात की शिफ्ट मिलती है, आगे तेरी मर्जी।’
जो सच था उसे मैंने साफ साफ बता दिया लेकिन समीर की मर्जी मैं पहले से ही जानता था। उसे ज्वाईन तो हर हाल में करना था।
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