ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
उसने ध्यान से मेरी बात सुनी और- ‘आज मैं तुमको ये कहने आयी थी कि मॉडलिंग लाइन छोड़ दो लेकिन तुमको खुश देखकर अब ऐसा कहने का मन नहीं करता।’ वो मुस्कुराई ‘बस यही वजह थी अंश वो सड़ा-सा मुँह बना के घूमने की?’
‘हाँ। अब जाऊँ?’ मैंने पीछे अपने दोस्तों की तरफ देखा जो प्रीती के साथ खड़ा होने पर मेरा मजाक बना रहे थे। मेरी हालत पर शायद प्रीती को कुछ तरस आया।
‘अगर मैं मना करूँगी तो कौन सा तुम रुक ही जाओगे। जाओ। बॉय, टेक केयर।’
मैं वापस चलने लगा।
स्कूल के बाद लगभग सारी लड़कियाँ बदल गयी थीं लेकिन प्रीती बस एक लड़की थी जो नहीं बदली। मैंने उसके बारे में कभी नहीं सुना कि वो किसी के साथ थी या है।
कुछ महीने बीते। मेरे पास कई बार यामिनी के फोन आये जिनमें आधे से ज्यादा पर्सनल कॉलस थीं। जिस एड का उसे इंतजार था उसमें अभी कुछ वक्त था, लेकिन उसने मुझे एक बात की तसल्ली करा दी थी कि ये एड जब भी होगा, उसके साथ मैं ही रहूँगा। बस मुझे इन्तजार करना था।
समीर जैसे कुछ दोस्तों के लिए मेरा मुम्बई जाना किसी मजाक से कम नहीं था। मुझे मिलते ही- ‘मुम्बई कब जा रहा है?’ ताना मारना दोस्तों की आदत हो गयी थी।
इस बीच मैं बिल्कुल खाली था। पैसे भी खत्म होने लगे थे। मनोज किसी कॉल सेंटर में जॉब पर था, उसने मुझे भी वहाँ ज्वाइन करने की राय दी।
मैंने वहाँ ज्वाइन कर लिया। इससे घर पर मम्मी की डाँट से भी बच सकता था और ठेस पहुँचाने वाले दोस्तों के मजाक से भी।
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