ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘ये फूल किसने दिये?’ मैंने उसके हाथ के फूलों की तरफ देखकर पूछा।
‘किसी ने दिये नहीं, मैंने खरीदे हैं तुम्हारे लिए!’ वो हडबड़ा सी गयी।
‘तो दोगी नहीं?’
‘ओह सॉरी।’ उसने सकपकाकर मेरे हाथ में वो गुलदस्ता थमा दिया! ‘कान्ग्रेट्स! अच्छा लगा जान कर कि तुम मॉडल बन रहे हो।’
‘नहीं ये तो बस टाईम पास करने के लिए है। मुझे पेन्टिंगस का शौक है और मुझे वो ही बनना है।’ मैं उन फूलों को देख रहा था और वो मेरे चेहरे पर।
‘सिर्फ टाईम पास करने के लिए?’ कुछ पढ़ने की कोशिश करते हुए- ‘अंश तुम कुछ बदल गये हो आजकल।’
‘तुम्हें ऐसा क्यों लगा?’
‘तुम अपने दोस्तों को छोड़कर मेरे साथ खड़े हो। मेरे लाये फूल तुमने खुद मुझसे लिये जबकि मैं तो सोचकर आयी थी कि तुम इनको कहीं फेंक दोगे।’
‘अब मैं इतना बुरा भी नहीं हूँ।’ मुझे प्रीती की बात पर हँसी आ गयी। उसने उस पर भी ताना मार दिया। ‘देखो पहले तो जरा सी स्माइल के लिए भी इन्तजार करना पड़ता था और आज तुमको हँसते हुए देख रही हूँ। इट इज बिग अचीवमेन्ट ऑफ माईन।’
‘अचीवमेन्ट?’ मैं हैरान था। ‘प्रीती एक बात आज तक मेरी समझ नहीं आयी, तुम लोग इतना क्यों चढ़ा कर रखते हो मुझे? अगर मैं हँसता हूँ या अच्छा दिखता हूँ तो ये मेरे लिए अच्छी बात है न। इसमें तुम लोगो का तो कोई फायदा नहीं, फिर?’
मेरे सवाल पर उसने एक फीकी सी मुस्कान दी और फिर थोड़ी सहज होती हुई-
‘औरों का तो पता नहीं, लेकिन मेरी प्राब्लम मुझे आज तक समझ नहीं आयी।’ थोड़ी और संजीदगी के साथ- अंश... तुमने किसी को पसन्द किया है कभी?’
‘नहीं, आज तक तो वो नौबत नहीं आयी। मुझे सारी लड़कियाँ एक जैसी ही लगती हैं।’
‘हाँ, होती भी हैं। खैर, तुमने किसी को पसन्द नहीं किया तो तुम कभी समझ नहीं सकते। बस इतना ही कह सकती हूँ कि कोई किसी को सोच समझकर पसन्द नहीं करता।’
प्रीती की आवाज बहुत गहरी थी। अब बात इससे आगे बढ़ाना मुझे भी ठीक नहीं लगा।
‘तो...अब मैं जा सकता हूँ?’ मैंने इजाजत माँगी।
‘पहले मेरी बात का जवाब दो। तुम अचानक बदल कैसे गये?’
‘तुम मेरे बारे में ज्यादा नहीं जानतीं। बस इतना ही कह सकता हूँ कि जब तक स्कूल में था तब तक मैं बहुत बेबस था, हमारा घर मम्मी चलाती है। मैं जरूरत पड़ने पर भी उनकी मदद नहीं कर पाता था और अब क्योंकि मैं फ्री हूँ तो कम से कम इतनी तसल्ली है कि कुछ न कुछ तो कर ही लूँगा। पहले मुझे हर समय एक घुटन-सी होती थी, अब वो खत्म हो गयी है।’
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