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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

14

तीसरी शाम :


माल रोड के किनारे एक छोटे से रोडसाईड रेस्टोरेन्ट में मैं अपनी पहली कमाई की ट्रीट दे रहा था अपने दोस्तों को। जब से मुम्बई से लौटा था तब से इन सब ने जान खा ली थी इस पार्टी के लिए। इनका मुँह किसी भी दलील से बन्द नहीं हो सकता था इसलिए मुझे सॉफ्ट ड्रिंक और फास्ट फूड का सहारा लेना पड़ा। मनोज समीर और बाकी दोस्तों को मुम्बई की कहानियाँ थोड़ी बड़ा चढा कर सुना रहा था।

इनकी हँसी मजाक के बीच बार-बार मेरी नजर सड़क पार खड़ी एक लड़की पर जा रही थी। वो स्कूटी, और वो व्यक्तित्व काफी जाना पहचाना सा था। वो भी कई बार हमारी तरफ देख चुकी थी। लगा जैसे किसी का इन्तजार कर रही है।

जब उसने अपने कानों से मोबाइल हटाकर आखिरी बार मेरी तरफ देखा तो पता चला-

‘ये प्रीती है?’ मैंने उसकी तरफ उँगली से इशारा किया। समीर उसी दिशा में मुडा।

‘हाँ,शायद।’ उसने पहचानने की कोशिश करते हुए कहा। ‘अरे वही होगी। मैं तुझे बताना भूल गया। वो परसों तेरे बारे में पूछ रही थी।’

मैं बाहर आ गया। वैसे भी मनोज की मनगंढत कहानियों में हाँ में हाँ मिला मिलाकर मैं थक चुका था।

वो प्रीती ही थी, हाथ में रेड जैरबैरा का एक बड़ा सा गुलदस्ता लिये।

रेस्टोरेन्ट के गेट से लेकर सड़क पार कर लेने तक उसकी नजरें मुझपर ही रहीं। उसकी तरफ बढते हर कदम पर उसकी मुस्कुराहट बढती ही जा रही थी।

‘पागल लड़की।’ मैं खुद में बडबड़ाया।

कई दिनों बाद वो मेरे सामने थी। काफी अलग लग रही थी। उसे देखकर ही पता चल रहा था कि आज उसने सजने संवरने में काफी मेहनत की है। काफी वक्त जाया किया है।

‘हाय।’ मैं पहली बार उसके सामने इतना खुश था....

‘हाय अंश। कब लौटे?’

तुमको नहीं पता क्या?’ ....और पहली बार मैं उससे मजाक कर रहा था।

‘वो...’ वो शर्मिन्दा सी हो गयी।

‘गति बता रही थी कि तुमने घर में कई बार कॉल की थी मेरे लिए।’

‘हाँ वो बस कुछ...ऐसे ही।’ उसे कोई सही जवाब नहीं सूझा। मुझे उस पर हँसी आ रही थी। जानता था कि वो बात आगे नहीं बढ़ा पायेगी।

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