ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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सुबह : 6:30
ठण्डी छत के एक कोने पर खड़े अंश से जैसे पूरा माहौल कह रहा था कि हर सुबह एक नयी जिन्दगी का आगाज होता है। फर्क नहीं पड़ता कि कितनी अन्धेरी और लम्बी रात आपने गुजारी है, फर्क इस बात से पड़ता है कि आप अपनी सुबह की उम्मीद नहीं छोड़ते। मैं अपनी इस सुबह से क्या उम्मीद कर रहा था ये जान पाता इससे पहले ही मनोज की आवाज ने मुझे नीचे सीढ़ियों पर बुला लिया।
‘अंश कैब तैयार है!’
मनोज मुझसे ज्यादा खुश, मुझसे ज्यादा बैचेन था इस ट्रिप को लेकर। उसके लिए ये सिर्फ एक मौका था मुम्बई शहर घूम आने का लेकिन मेरे लिए ये बहुत अलग था। पहली बार एक बेवजह-सी बात के लिए एक अच्छी खासी रकम लेकर घर से निकलने वाला था। मेरी वजह से अगर ये पैसे डूब जाते, तो मैं घर के एक अच्छे खासे नुकसान के लिए जिम्मेदार होता।
मैंने अपना बैग लिया और बेहद भारी मन से माँ से विदा ली। जब तक मैं रेलवे स्टेशन न पहुँच गया तब तक मेरा मन दोतरफा ही रहा।
माँ को मेरा अकेले आना ठीक नहीं लग रहा था, इसलिए मैं अपने साथ मनोज को ले आया। वो बस घूमने के लिए मेरे साथ था। जो खर्च हो रहा था, उसे हम बाँट रहे थे। मुझे उस वक्त पापा की कमी सबसे ज्यादा महसूस हुई। यहाँ मैं अकेला था और शिमला में मेरा परिवार।
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