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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

13

दोपहर ठीक 12 बजे


हम उस पते पर थे- र्पोटिको, लैमिग्न्टन रोड।

ये नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना था और जब तक मैंने यहाँ पहुँचकर इसका आलीशान ऑफिस न देख लिया तब तक अन्दाज ही नहीं लगा पाया कि कितना बड़ा मौका मेरा इन्तजार कर रहा था। यहाँ आकर मैंने कोई गलती नहीं की।

ये मेरी जिन्दगी का दूसरा मौका था।

हम यामिनी से मिले। वो हमें देखकर बहुत ही खुश हुई। कुछ कागजी औपचारिकताओं के साथ उसने मुझे इस फोटो शूट के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी दी।

‘अभी तुमको कोई पर्टीकुलर टाइप हम नहीं दे रहे हैं लेकिन ये शूट एक कपडों के ब्रेन्ड के लिए है और एक पोर्टफोलियो शूट है, इनमें से कुछ एक मैगजीन में भी छपेगीं। तीन लोगों में से सिर्फ तुमको ही पसन्द किया है इन लोगों ने। अगर तुम इसमें जम जाते हो तो ये तुम्हारी काफी अच्छी ओपनिंग मानी जायेगी। इनमें से कुछ फोटो हम आगे और लोगों को भी भेज देगें, हो सकता है कि तुम्हें जल्द ही और मौका भी मिल जाये।’

बातें करते हुए हम स्टूडियो तक पहुँचे।

‘आल द बेस्ट।’ वो चली गयी।

‘ये पहन लो।’ एक लड़के ने बेहूदी से कुछ कपड़े मेरे हाथ में पकड़ा दिये।

जब से होश सम्हाला था शायद मैंने जिन्दगी में पहली बार अपने दम पर इतने महँगे और अच्छे कपडे़ पहने थे। मनोज के सामने गया तो उसने मुझे बक्शा नहीं।

‘साले अब पता चला लड़कियाँ क्यों भागती थी तेरे पीछे। हमारी ही गर्लफ्रेन्डस हमसे ही तेरा नम्बर क्यों माँगती थी।’

‘हाँ तो, क्यों माँगती थी?’ मैंने मजाक में पूछ लिया।

‘बढि़या दिखता है न! सच यार जलन तो हो रही है लेकिन खुश भी हूँ तेरे लिए। बड़ा अच्छा लग रहा है मुझे कि मेरा दोस्त कुछ बन रहा है।’

‘थैंक्स मनोज। चल अब चुप हो जा, बोर मत कर!’ मैंने धीमे से उसके पेट पर मुक्का मारा।

कुछ और लोग हमारे पास आये। एक लड़का जिसने मेरे कपड़े थोडे सेट किये। एक आदमी जिसने मेरे बाल सेट किये और मेरा मेक-अप किया। एक और जिसने मुझे पोज करने की थोड़ी बहुत तालीम दी।

पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद मैं एक विशाल से हॉल में था। यहाँ हर दीवार, हर कोना एक अलग माहौल के हिसाब से सजा था।

‘अंश।’ एक हाथ मेरे कन्धे पर पड़ा। मैं पीछे पलटा।

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