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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

माँ और मिसेज राय ने उन्हें मुझसे थोड़ा दूर किया। वो उसे समझा रहीं हैं कि मुझे कुछ वक्त दें और इधर सोनू की रुआँसी आँखें मिन्नतें कर रहीं है मुझे शान्त हो जाने के लिए। उसे लगता है कि मुझ में बहुत गुस्सा है, हिम्मत है कोई बहस या कोई लड़ाई करने की लेकिन नहीं, मैं तो पहले ही थक चुका हूँ। हार चुका हूँ।

मेरी नजर उस पर पड़ते ही उसने अपना चेहरा झुका लिया लेकिन उसकी तकलीफ तो अब भी दीख रही है। मैं उसके सामने घुटनों पर बैठ गया और- ‘तुम रो क्यों रही हो?’ मैंने उसका भीगा हुआ चेहरा ऊपर उठाया। ‘हम घर चल रहे हैं...।’ मेरी आवाज काँप रही है उसके दुःख से। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया लेकिन-

‘मैं साथ नहीं आ रही।’ उसने हाथ छुड़ा लिया। ये सिर्फ नाराजगी नहीं है कुछ और भी है।

‘किस ने कहा?’ मैंने एक बार राय साहब की तरफ देखा जो फिलहाल सब्र कर तमाशा देख रहे हैं।

‘तुम्हीं सबसे पहले हो।’ अपनी भरी हुई आँखें मुझ पर रखे उसने शिकायत सी कर दी।

‘मैं एक बार चले जाने को कहूँगा तो तुम चली जाओगी?’ मुझे हँसी आ रही है। ‘सोनू तुम मेरी बीवी हो गर्लफ्रेन्ड नहीं... चलो।’ मैं उठने लगा। एक बार और उसकी तरफ देखा।

दाँतों बीच अधर दबाये वो बैचेनी से यहाँ-वहाँ देख रही है। न जाने कैसी बेबसी है उसमें। बहुत कोशिश कर रही है अपने आँसुओं और जज्बातों को काबू करने की लेकिन वो फिर भी बहे ही जा रहे हैं।

वो खुद कमजोर है और मुझे भी बना रही है।

‘सोनू अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारे बाद मैं अपनी जिन्दगी नये सिरे से शुरू कर सकता हूँ तो ये एक गलतफहमी है तुम्हारी।’ वो चुप है। नजरें चुरा रही है। ‘तुम ऐसा क्यों कर रही हो? कुछ नहीं बदला है सोनू.... ना तुम, ना मैं, ना हमारा प्यार... सब कुछ वैसा ही है। तुम आज भी मेरे लिए उतनी ही जरूरी हो!’ मेरे हाथ की पकड़ उसकी कलाई पर कस गयी। ‘सोनू... मैं साँस लूँ या न लूँ लेकिन जो मुझे मेरे जिन्दा होने का एहसास कराता है वो तुम हो।’ मैं सब कुछ कह गया। आस-पास खड़े लोगों के चेहरों पर हल्की सी तसल्ली, एक यकीन उभर आया है लेकिन सोनू के चेहरे पर नहीं।

मुझे यकीन है कि मेरे कहे का असर सीधे उसके दिल पर हो रहा है लेकिन फिर वो क्यों मुझे गले से लगा नहीं रही? क्यों? उसके खामोश से चेहरे पर अब भी वही फैसला क्यों दीख रहा है? उसकी खामोशी मेरा हौसला तोड़ रही है।

‘तो तुम्हें वाकई जाना है?’ आखिरकार मैं खड़ा हो गया। उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं है सिवाय चुपचाप आँसू बहाने के। ‘मैं तुमसे पूछ रहा हूँ... तुम्हें सच में अलग होना है?’ वो वैसी ही है, खामोश... सिर झुकाये... लगातार हाथों से अपने व्हील चेयर के हत्थों को मलती हुई। मेरी उम्मीद टूटती जा रही है।

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