ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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मेरे पिता की मौत के बाद ये वो दूसरा दर्दनाक नजारा है जो मैं देख रहा हूँ और जगह भी वही है... एक मनहूस सा अस्पताल। वार्ड की चौखट पर जमा सा खड़ा हूँ। किसी का ध्यान मुझपर नहीं गया अब तक। इस वार्ड में हमारे कई परिचित हैं.... मेरी अपनी माँ और बहनें भीं। और वो इस भीड़ का केन्द्र हैं।
एक व्हील चेयर पर बैठे हुए, उसके अलग अलग हिस्सों को छूकर, मरी सी मुस्कुराहट के साथ सोनू एक नर्स से इसे कन्ट्रोल करना सीख रही है। मैं चौखट के दाँयी तरफ गिर सा गया। ये सच नहीं हो सकता..... ये कोई बुरा सपना है सिर्फ चन्द घण्टों में मेरी जिन्दगी इतनी नहीं बदल सकती!
सोनाली! उसका हर करीबी उसके पास खड़ा है लेकिन फिर भी कितना अकेलापन है उसके चेहरे पर! आँखें किसी बड़े समझौते के एहसास से भरीं हैं। राय साहब और उनकी पत्नी एक कोने में बैठे अपनी आँखों से जैसे खून बहा रहे हैं। माँ उन्हें सान्त्वना दे रही है। नहीं, ये सच नहीं हो सकता! मेरा जहन इस सच को स्वीकार ही नहीं कर रहा।
डगमगाकर उठते मेरे कदम उसकी तरफ न जाने कब से बढ़ रहे थे कि अचानक मैं वापस पलट गया। मैं इस वक्त उसके सामने नहीं जा सकता। उससे नजरें नहीं मिला सकता। कहीं छुप जाने के लिए मैंने कदम वापस ले लिये। इससे पहले कि किसी की नजर मुझ पर पड़े मुझे यहाँ से निकल जाना है। जल्दी! उसका सामना करने का साहस तो जुटा लूँ पहले!
कुछ समझ नहीं आ रहा कि उसे मिलने के लिए खुद को तैयार कैसे करूँ? सबसे पहले मुझे उस डॉक्टर से मिलना है जिसने अभी कुछ देर पहले हमें कहा कि सोनाली पूरी तरह ठीक है। किस तरह का इलाज किया उसने सोनू का? वो इस हाल में कैसे पहुँच गयी? मुझे सब से पहले उससे ही मिलना है।
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