ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘अगर वो एक फ्लर्ट पर इतना यकीन भी नहीं कर सकती कि उससे कोई सवाल कर सके तो उसके लिए यही अच्छा है कि वो उस फ्लर्ट को छोड़ ही दे। तुम इतनी फिक्र मत करो उसकी जल्द ही वो किसी नये.... ईमानदार.... मुझसे अच्छे किसी इन्सान के साथ अपनी जिन्दगी शुरू कर लेगी।’ तकलीफ मुझे भी हो रही है ये कहते हुए लेकिन सिवाय अपने आप पर तरस कर मुस्कुराने के और कर भी क्या सकता हूँ?
‘अंश उसे तेरी जरूरत है...’
‘मुझे तो नहीं लगता! उसने मेरी वजह से अपनी जान देने की कोशिश की। उसने अपना अविश्वास लफ्जों में तो नहीं कहा लेकिन साबित जरूर कर दिया..... और मैं उसे कोई दूसरा मौका नहीं देना चाहता....’
‘वो अपने पैरों पर चलने यहाँ तक कि खड़े होने की ताकत भी खो चुकी है डैम इट...!’ उसने मुझे झकझोर दिया। मैं सन्न रह गया! अन्धेरा सा छा गया एक पल को आँखों के सामने। कानों के पर्दों पर आवाज भी ठण्डक के साथ पड़ने लगी। संजय न जाने क्या बोले जा रहा है। ‘....हम सब यही सोच रहे थे अब तक कि जहर का इतना हैवी डोज लेने के बावजूद उसे कोई नुकसान कैसे नहीं हुआ लेकिन जब.....’
मैंने न जाने कब वो एक कदम का फासला खत्म किया और उसका गिरहबान जकड़कर- ‘उम्मीद करता हूँ कि ये मुझे उसके पास वापस भेजने की कोई चाल नहीं है।’ मैंने उसे चेतावनी दी। अब मैं किसी भी हद को पार करने की कगार पर पहुँच चुका था।
‘तू बस अस्पताल पहुँच जा।’ उसने इत्मिनान से मेरे हाथ अपने कॉलर से हटा दिये।
लगा कि वो सच कह रहा है और सकता है कि ये सिर्फ एक भद्दा मजाक हो लेकिन सोचने का वक्त नहीं है मेरे पास! मैं अपनी आँखों से सच देखना चाहता हूँ! मैं उसे वहीं छोड़ कर बाहर आ गया। हर शिकायत... हर नाराजगी मैं वहीं छोड़ आया जो मुझे सोनू से थी। बस अपनी अगली ही साँस में मैं उसके पास पहुँच जाना चाहता हूँ.... कैसे भी!
|