ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘तू यहाँ क्या कर रहा है? वहाँ सब तेरे बारे में पूछ रहे हैं...!’ अन्दर कदम रखने से पहले ही वो मुझ पर बरस पड़ा। ‘....और तेरा मोबाइल कहाँ फेंका हुआ है तूने?’
मैंने चुपचाप अपना मोबाइल पैन्ट की जेब से निकाला और सेन्टर टेबल पर रख दिया। उसने एक बार उस ऑफ पड़े सेल की तरफ देखा और वो कुछ और बोल पाता इससे पहले मैं एक सिगरेट और लाइटर लेकर से बॉलकनी की तरफ चल दिया। वो मेरे पीछे ही आया।
‘पता है? मैं पिछली रात से लगातार यहाँ वहाँ दौड़ रहा हूँ। सिवाय एक कप कॉफी के कुछ और लिया नहीं! अपने घर तक नहीं गया ना ही उनसे बात की! थकान से मरने की हालत में पहुँच चुका हूँ लेकिन फिर जाकर सो नहीं रहा यहाँ.... यहाँ तेरे सामने खड़ा हूँ....’ मैं बॉलकनी के कोने में पहुँचा कि वो मेरे रास्ते के बीच आ गया और झल्लाते हुए-’...आप पूछेंगे नहीं क्यों?’
‘क्यों?’ मैंने थकान के साथ सिगरेट सुलगा ली और अपनी बालकनी की हद पर खड़ा सामने बिखरे मुम्बई शहर को देखने लगा।
‘वो अपने बाप के साथ जाने के लिए मान गयी है।’
कुछ इस तरह कहा उसने जैसे कोई एहसान उतार रहा हो। मेरे दिल से जैसे कुछ आ कर टकरा गया। सीने के ठीक बीच में एक टीस उठी! एक लम्बे कश के धुँए के साथ मैंने सीने से उस दर्द को भी बाहर निकाल दिया।
मेरी खामोशी, पथराया सा चेहरा शायद परेशान कर रहा है उसे।
‘तूझे जानना नहीं है कि उसने क्यों एक दम से अपना फैसला बदल लिया?’ कमर पर हाथ रखे वो मेरे सामने वैसे ही डटा रहा।
‘हू द हैल आई एम? ये उसकी जिन्दगी है, उसके डैड और फैसला भी उसी का होगा न?’
‘और तूने उसे नहीं कहा अपने डैड के साथ जाने को?’ वो बौखला गया।
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