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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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डॉक्टर के बता देने के बाद भी कि ये आत्महत्या की कोशिश है राय साहब की नजरों में मैं ही गुनहगार था। वो सोनू के होश में आने का इन्तजार कर रहे थे। उनके शक का इलाज बस अब सोनू के ही पास था।

अपनी बेटी के पास बैठे, उसका हाथ थामें भरी हुई आँखों से उसे ताके ही जा रहे थे। सोनाली के होश में आने का इन्तजार करते-करते वो खुद बेहोशी के कगार पर पहुँच गये। उनका दिल इतना मजबूत नहीं था कि अस्पताल में सोनू का चल रहा इलाज देख सकें। उनका प्यार इससे पहले तक उनके गुस्से में दिख रहा था और अब उनकी कमजोरी में भी दिखायी पड़ने लगा।

मिसेज राय और संजय उनसे मिन्नतें करने लगे कि वो घर जाकर आराम करें। राय साहब अव्वल तो माने नहीं और आखिरकार एक शर्त पर उन्होंने वापसी का रास्ता देखा कि उनके दो वफादार आदमी वहीं अस्पताल में रुक कर सोनाली के हर पल की खबर उन्हें देते रहेंगे।

वो लौट रहे थे किसी बेहद मुश्किल वक्त की तरह जो तरसा-तरसा कर गुजरता है और आखिरी पल तक धडकनें बाँधे रखता है कि किसी भी पल वापस हमारी ओर मुड़ जायेगा। यही हुआ भी।

वो जाते-जाते भी एक बार फिर संजय की तरफ बढ़ गये। उसका चेहरा पहले ही इस भँवर में था कि किस तरह वो अपना पल्ला झाड़ सकेगा।

राय साहब को अपने सामने फिर खड़ा देख वो और घबरा गया।

‘ये ही वजह थी कि मैं उसकी शादी इस जैसे इन्सान से नहीं करना चाहता था।’ एक कड़वी नजर मेरी तरफ कर के- ‘हो सकता है कि ये एक अच्छा इन्सान हो लेकिन एक अच्छा पति नहीं बन सकता कभी!’

अपने जबड़े को भींचते हुए वो एक बार मेरी तरफ भी बढ़े- ‘कुछ भी करो लेकिन मेरी बेटी मुझे सही सलामत चाहिये वर्ना मैं तुम्हारा क्या हाल करूँगा, ये समझाने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। आई विल नाट लीव यू !’

‘आप बेफिक्र रहीये, अगर सोनाली ने आँखें नहीं खोलीं तो मैं खुद आपके पास आ जाऊँगा। मैं उससे बस एक सवाल करना चाहता हूँ और...’

‘तुम उससे कोई सवाल नहीं करोगे? जब वो होश में आयेगी सबसे पहले मैं मिलूँगा उससे और अगर तुम्हारी कोई भी गलती हुई तो तुम उससे कभी मिल ही नहीं पाओगे मैं तुम्हें इस लायक छोडूँगा ही नहीं!’

एक सैलाब मुझे खामोश दीवार से टकरा-टकरा कर वापस लौट गया।

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