ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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सुबह तीन बजे।
दाहिने कान और कन्धे के बीच अपना मोबाइल दबाये संजय वार्ड में दाखिल हुआ। उसके दोनों हाथ काफी के दो कप पकड़े हुए थे। उनमें से एक उसने मिसेज राय को दिया और दूसरा मेरी तरफ बढ़ा दिया। माहौल काफी हल्का हो चुका था। हम सब एक दूसरे पर नाराजगी जाहिर करने से ज्यादा सोनू के लिए परेशान थे। उसने अब तक आँखें नहीं खोली थीं।
‘नो थैंक्स।’ मैंने उसका हाथ अपने चेहरे से थोड़ा दूर कर दिया। उसने दोबारा नहीं पूछा और फोन पर दूसरी तरफ के इन्सान को ‘होल्ड’ कहकर फोन मुझे पकड़ा दिया।
‘तुम्हारी मम्मी बात करना चाहती है।’ उसने खुद ही काफी के घूँट भरने शुरू कर दिये।
मैंने मोबाइल लिया और वार्ड से बाहर आ गया।
‘मम्मी...’
‘अब तो तुम्हें वो हासिल हो ही गया होगा न जो तुम हासिल करना चाहते थे?’ औरों की तरह वो गुस्सा तो नहीं उगल रही थी लेकिन अपनी पहली ही लाइन में उसने बता दिया कि वो भी मेरे विपरीत ही खड़ी है। ‘...आँसू, बेइज्जती.... अपने परिवार को छोड़ देने का एहसास काफी नहीं था जो तुम अब इस तरह की तकलीफ भी दे रहे हो हमें?’
मैंने जवाब नहीं दिया।
‘अंश अभी कुछ दिन पहले ही मैं ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी कि अब तुम्हारे अन्दर सुधार हो रहा है... कि तुम अपने परिवार के लिए खड़ा होना सीख गये हो लेकिन.... ! तुम क्यों इस तरह नीचा दिखाते हो मुझे? क्यों ये गाली देते हो कि मैं तुम जैसे किसी इन्सान की माँ हूँ? क्यों अपने साथ-साथ मुझे भी गुनहगार बना देते हो तुम?’
मैं किन हालात में हूँ ये उसने भी नहीं सोचा और वो बोलती गयीं.... बोलती गयीं। कितना कुछ पूछ लिया लेकिन मैं जवाब किसी एक सवाल का भी न दे सका। उसने मेरे जवाब का इन्तजार किया भी नहीं और फोन काट दिया।
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