ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘राय साहब! ये क्या कर रहे हैं आप?’ संजय ने मुझे छुड़ाते हुए कहा। अब राय साहब संजय की तरफ ही मुड़े!
‘तुम अब भी उसकी तरफ से बोल रहे हो? देख नहीं रहे किस हाल में पहुँचा दिया उसने सोनू को! इसकी तरफदारी करते हुए आये थे न तुम मेरे पास कि ये उसे अपनी जान की तरह सम्हालेगा, प्यार करेगा! देख लिया कितना प्यार कर रहा है ये!’ उनकी आँखों में गुस्से की जगह आँसुओं ने ले ली। संजय सिर झुकाये खामोश खड़ा था, हो सकता है कि उसकी नजरों में भी मैं ही गुनहगार था अब। ‘संजय ये एक फ्लर्ट है! इसे आदत है नयी-नयी लड़कियों की। काफी दिन गुजार लिये इसने सोनू के साथ अब उससे पीछा छुड़ाने के लिए उसे जहर दे दिया इसने!’ वो आरोप लगा गये।
‘नहीं, ये सही नहीं है राय साहब। अंश उसकी बहुत कद्र करता है....’ उसके लफ्जों में जान ही नहीं थी लेकिन किसी माँ की तरफ अपने कसूरवार बच्चे को बचाने की कोशिश जरूर थी।
‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता...’ उनका गुस्सा एक बार फिर हिलोरे मारने लगा।’मैं इसे छोडूँगा नहीं!’ मेरी तरफ एक झटके से मुडकर- ‘तुम्हें सजा तो भुगतनी ही होगी! तुम्हें पता नहीं है कि तुमने क्या किया है।’
राय साहब की ऊँची होती आवाज और ऊँची होती जा रही थी। नर्स, जो सोनू की देखरेख के लिए वहाँ थी उसने राय साहब को बाहर जाने को कहा। हाथ पैर जोड़कर संजय उन्हें अपने साथ ले गया। वार्ड में कुछ देर को खामोशी छायी जो जल्द ही मिसेज राय की सिसकियों से दोबारा खत्म हो गयी।
वो भी बेहद गहरे सदमें में थीं लेकिन ना तो उनकी जुबान और न ही उनके आँसुओं ने मुझे किसी तरह दोषी ठहराया। जब मैंने जाकर उनके कन्धे पर हाथ रखा, वो रोती हुई मुझसे लिपट गयीं। माँ जैसा कुछ एहसास था उनका इसलिए काफी देर से सम्हलते मेरे आँसू आखिर उनकी गोद में बह ही गये। उनके स्पर्श में एक विश्वास था। एक अपनापन था जो कह रहा था- घबराओ मत, सब ठीक होगा।
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