ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
110
रात 10 बजे। एक प्राइवेट वार्ड।
सोनू के बिस्तर से एक स्टूल सटाये मैं उसके सिरहाने बैठा था। माथे से पिघलती पसीने की बूँदें गालों पर आते ही मेरे आँसुओं में मिल जातीं और मेरी भरी हुई सुर्ख आँखें एकटक उस पर जमीं थीं। बेहद नाराज था मैं उस वक्त.... बेहद नाराज लेकिन आखिर किस पर ये नाराजगी जाहिर करता? जिस पर करनी थी वो तो ना कुछ सुन सकती थी और ना ही महसूस कर सकती थी।
संजय इसी वार्ड के दूसरे कोने पर खड़ा जिया को समझा रहा था कि वो बेटे को लेकर घर जाये। अस्पताल के इस अजीब से माहौल में वो सो नहीं पा रहा था। जिया बाहर जाने लगी। संजय उसे पार्किंग तक छोड़ने जा रहा था।
‘मैं अभी आता हूँ। तू कुछ लेगा? चाय... कॉफी?’ उसने मेरी तरफ देखकर पूछा। मेरा सिर ना में हिल गया।
मेरे जहन में कई सवाल थे और उनमें से एक तो मेरे दिमाग की नसों में खून के साथ लगातार दौड़ रहा था-
‘तुमने ऐसा क्यों किया?’
ये सवाल पूछने वालों की गिनती कुछ ही देर में और बढ़ गयी। राय साहब तक खबर पहुँच चुकी थी और वो खुद अस्पताल। वो तेज डग भरते हुए सोनू के वार्ड में दाखिल हुए, संजय उनसे बस कदम भर पीछे ही था। मैं खड़ा हो गया। जाने क्या था उनके दिमाग में कि वार्ड में दाखिल होते ही वो सीधे मेरी तरफ आये और- ‘यू रॉस्कल... !’ दोनों हाथों से मेरे कॉलर खींचे, पूरी ताकत से उन्होंने मेरी पीठ को दीवार पर एक दो बार टकराया। जाने कितने सवाल करे उन्होंने? जाने कितना कुछ कह गये मुझे लेकिन मैं कुछ न समझ सका। अपने होश उस रात सिर्फ सोनाली ने ही नहीं बल्कि मैंने भी गँवा दिये थे।
मैं तो इस हालत में नहीं था कि कुछ महसूस कर सकूँ लेकिन इससे संजय को जरूर चोट पहुँच गयी।
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