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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘तुम सो रही हो?’ मैंने लाईट आन की और उसकी तरफ गया। वो अजीब सी हालत में पड़ी थी... बिल्कुल अस्त-व्यस्त। बाँया हाथ और सिर सिरहाने से नीचे की तरफ लटक रहा था। ये तो कोई तरीका नहीं हुआ सोने का! एक हल्की सी दहशत के साथ मैं उसके पास बैठ गया।

‘सोनू!’ मैंने उसके चेहरे पर बिखरे बालों को हटाया और-

‘सोनू!!’ मैं चीख पड़ा! एक धक्के से मेरा दिल जैसे सीने से निकल गया हो।

वो आधी बेहोशी में थी..... बन्द आँखें। पसीने से लथपथ और बदन ठण्डा सा हो रहा था उसका।

‘सोनू....’ मैंने उसे बाँहों में उठाया और उसके गाल थपथपाये। उसने बस पलकें हल्के से झपकायीं जवाब में। उसकी बन्द, काँपती सी पलकें सबूत थीं कि वो मुझे सुन सकती है और अपनी तरफ से प्रतिक्रिया करने की कोशिश भी कर रही है लेकिन कर नहीं पा रही। जैसे उसने अपने शरीर से सारा काबू खो दिया हो।

मैंने उसके चेहरे पर पानी की बूँदें छिड़कीं। ‘तुम्हें क्या हुआ है?’

मैंने आस-पास उसकी हालत की वजह ढूँढी और मेरी नजर पलंग के पास रखे उस गिलास पर पड़ी जिसमें अभी भी कुछ बूँदें बाकी थीं। मैंने वो गिलास सूँघा। इसी गन्ध से पूरा कमरा भरा हुआ था।

‘व्हाट यू हैव डन बेबी....?’ मैं उसे झकझोर कर रह गया।

उसकी प्रतिक्रिया बिल्कुल ही बन्द हो गयी। वो ठण्डी पडने लगी। कुछ देर को मेरा दिमाग भी सुन्न हो गया, समझ ही न आया कि क्या करूँ? किसी अस्पताल या डॉक्टर का नम्बर ढूँढने का वक्त नहीं बचा था अब। जो कुछ करना था, बिना वक्त गँवाये करना था।

बस कुछ देर में ही मैं अपनी गाड़ी भीड़ भरी सड़क पर दौडा रहा था। उसे डाक्टरी इलाज की जरूरत थी।

हालत ज्यादा खराब होने की वजह से उसे इमरजेन्सी में भर्ती करवा कर मैंने सब से पहले संजय को कॉल की। जैसे मुझे लगा था वैसे ही वो भी किसी नशे को सोनाली की हालत का जिम्मेदार समझ रहा था। उसने मुझे हिम्मत बंधायी और सलाह दी कि जब तक डॉक्टर कोई रिपोर्ट न दे दें तब तक मिस्टर राय को इस बारे में कुछ न कहूँ।

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