ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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कुछ दिनों बाद, रात आठ बजे।
करीब चार बार अपने फ्लैट की डोर बैल बजा लेने के बाद मैंने हारकर धीरे से दरवाजे को अन्दर धकेला। ये अनलॉक था। मैं अन्दर दाखिल हुआ। यहाँ मातम सा सन्नाटा छाया हुआ था। आधा घर अन्धेरे में डूबा था।
‘सोनू!’ मैंने लाईटस आन करते हुए उसे आवाज लगायी।
नये घर की तस्वीरों का लिफाफा मैंने सेन्टर टेबल पर रखा और उसे आवाज लगाता हुआ यहाँ वहाँ तलाशने लगा। उसकी तरफ से प्रतिक्रिया नहीं हुई। अब कुछ अजीब लगने लगा। वो कॉल नहीं उठा रही थी और ना ही उसने मुझे बताया कि वो कहाँ जाने वाली है।
मैंने उसे ढूँढना जारी रखा।
सोनू शाम ढलते ढलते रोज, मुझे कम से कम दो बार फोन कर चुकी होती थी कि मैं कब तक घर पहुँच रहा हूँ लेकिन बस उसी रात उसकी कोई कॉल मेरे पास नहीं आयी। बॉलकनी, किचन, बाथरूम हर कहीं जहाँ इस वक्त वो हो सकती थी मैंने ढूँढ लिया। घर यूँ खाली लग रहा था मानो वो इसे छोड़ गयी हो। जाने अन्जाने पहला यही खयाल मेरे मन में आया। ये विचार बुरा था लेकिन..... इससे बदतर भी कुछ हो सकता था।
आखिरकार मैं बैडरूम में गया। यहाँ उसे होना तो नहीं चाहिये था लेकिन फिर भी एक नजर तो मुझे मारनी ही थी उस तरफ भी।
‘सोनू ये लुका छुपी खत्म भी करो अब।’
मैंने गेस्टरूम का दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही शराब और किसी दवा की एक भीनी सी महक मेरी साँसों में चढ गयी। कमरे में जल रहे लाल रंग के नाईट बल्ब की हल्की सी रोशनी में मैंने उसे देखा। वो बिस्तर पर थी।
मैंने साँस ली।
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