ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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जो कुछ मैंने यामिनी से सुना था उससे मेरा बर्ताव एक दम से बदल गया। मैं जैसे किसी तूफान से घिर गया था उस वक्त और जैसे मेरी अपनी ही आवाज मुझे सुनायी नहीं दे रही थी। मैं सवालों के दलदल में डूब रहा था। मेरी हँसी, मेरा ध्यान, मेरी जिन्दगी सब इसमें डूब चुका था। मैं अपने आप से दूर हो गया।
इस बीच यामिनी ने मुझे कॉल करना जारी रखा और मैंने उन्हें नजरअन्दाज करना लेकिन फिर भी उसके कहे लफ्ज मेरे दिमाग में कहीं अटक गये थे। मैं काफी तनाव में था। कभी-कभी वाकई लगता था कि कम से कम एक बार अपनी बेटी को देख आऊँ। दिन में हजार बार मेरा दिमाग दोहराता था - मेरी बेटी! उसका चेहरा देखने को, उसकी आवाज सुनने को, उसे छूने को, गोद में लेने को, जैसे मैं तड़प-सा जाता था। कभी-कभी आँख बन्द करके उसका चेहरा तराशता था कि वो कैसी दिखती होगी, कभी खामोश बैठकर उसकी आवाज सुनने की कोशिश करता। एक दो बार मैंने यामिनी को फोन तक लगा दिया कि उसे कहूँ कि साक्षी को मुझे मिलाने लाये और फिर बिना कुछ सोचे ही फोन काट भी दिया। मैं अब पहले से ज्यादा खामोश और संजीदा हो गया।
मुझमें जो नयापन आ गया था, मैं खुद में आया बदलाव महसूस कर रहा था।
मेरी सोच में सिर्फ साक्षी और यामिनी नहीं थी बल्कि सोनाली भी थी। ये जाहिर था कि मैं उसे सच से ज्यादा दिन दूर नहीं रख पाऊँगा, वो जल्द ही सच तो जान ही लेगी। मैं उसे खुद सब कुछ कह देना चाहता था लेकिन हालात को समझाने के लिए उस वक्त मुझे सिर्फ शब्द काफी नहीं लगे। सोनाली मुझे गलत समझ सकती थी।
मैं इन्तजार कर रहा था सही समय और सही मौके का।
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