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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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और कितना नजरअन्दाज कर सकता था मैं उसे?

ये तो हद थी!

एक फैशन मैगजीन के पीछे अपना मुँह छुपाये मैं इस तरह से नाटक कर रहा था कि जैसे मैं इसे पढ़ रहा हूँ। मेरे सामने बैठी यामिनी बार बार कोशिश कर रही थी कि एक बार मैं उसकी आँखों में देखूँ लेकिन मैं हर बार नजरें फेर लेता।

यामिनी उस दिन मेरे और संजय दोनों के लिए एक सिर मढ़ी मेहमान थी। संजय मेरे और उसके बीच फँसा सा था।

हाथों को मलते हुए- ‘वैल... हम बहुत खुश हैं कि तुम्हारी जिन्दगी में अब सब कुछ सही चल रहा है....’ उसने एक बार फिर न्यौते का कार्ड हाथ में लिया और बनावटी दिलचस्पी के साथ- ‘ ...और शुक्रिया कि तुमने हमें अपने परिवार के इस सेलीब्रेशन में हमें याद किया।’

संजय ने बात आगे बढ़ायी वर्ना हम तीनों उसके इस खामोश केबिन में और आधे घण्टे तक खामोश ही बैठे रहते।

‘मुझे उम्मीद है कि आप दोनों इस सेलीब्रेशन में अपने परिवार के साथ जरूर आयेगें।’ उसने संजय के बाद मेरी तरफ देखा। उसे जवाब देने में मुझे कोई रुचि नहीं थी। संजय ने ही हर बार की तरह बात सम्हाली।

‘या ऑफ कोर्स हम....’ उसने एक बार मेरे शून्य से चेहरे की तरफ देखा और उसकी आवाज गिर गयी।’ ...जरूर आयेगें।’

यामिनी को हम दोनों का ही जवाब मिल गया था।

काफी मायूसी के साथ-

‘थैक्स मुझे इतना समझने के लिए और....’ नजरें मेरी तरफ तिरछी करते हुए- ‘...मुझे इतनी अटेन्शन देने के लिए भी।’ उसने कुर्सी छोड़ दी।

‘बॉय। हम जरूर आयेंगे।’ संजय के चेहरे पर बनावट साफ दिख रही थी। पता नहीं क्यों वो लोगों को इतना झेलना पसन्द करता था।

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