ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘यामिनी...।’ मेरा जवाब देना मुश्किल हो गया। या तो बहुत कुछ था मेरे पास कहने को या फिर कुछ भी नहीं लेकिन बस यह तय था कि मैं उसे नकारना चाहता था। मेरी नजरें सोनाली पर भी गयीं जो खामोश बैठी हमारी बातें सुन रही थी और कोशिश कर रही थी कि हमारी बातों का मुद्दा समझ सके। मेरे कदम किसी एक कोने पर ठहर नहीं रहे थे। कमरे में बैचेनी से टहलते हुए- ‘‘यामिनी, अच्छा है कि तुम कुछ नहीं चाहती मुझसे क्योंकि अब कोई मतलब भी नहीं है इस सबका, अब कुछ नहीं हो सकता और मैं, तुम प्लीज फोन रखो! मैं और बात नहीं कर सकता तुमसे!’ मैंने आखिर में कुछ झुंझलाहट में फोन काट दिया।
मेरा दिल जैसे भाग रहा था और साँसें भी! मैं उस वक्त अपनी बेकाबू भावनाओं को चेहरे पर आने से रोक नहीं सका।
‘क्या हुआ?’ सोनाली उसी सवाल के साथ मेरी तरफ देख रही थी। मेरे होंठ कुछ सच्चा झूठा कहते इससे पहले ही यामिनी की कॉल फिर मेरे नम्बर पर आने लगी। मैंने कॉल काटी और फोन ऑफ कर के रख दिया।
‘कुछ नहीं।’ मैं उससे नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पर रहा था।
मैं अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा। उसकी तरफ देखकर वाकई कुछ नहीं कह पाता।
‘कुछ नहीं?’ उसने अपनेआप में कहा।
मैं जानता था कि उससे नजरें चुराना कोई हल नहीं है। उसने वही सवाल दो बार और किया और मैंने उसे इस जवाब के साथ चुप करा दिया कि-
‘उसे यहाँ मुम्बई से गये काफी वक्त हो गया है और अब वो दोबारा यहाँ कोई काम करना चाहती है। उसे कोई ब्रेक चाहिये था। बस यही बात थी। अब मैं नहाने जा रहा हूँ।’ मैं बाथरूम के अन्दर आकर ही साँस ले पाया।
सोनाली समझ चुकी थी कि मैंने कुछ ऐसा सुना है जो बहुत मायने रखता है, जो मेरी पिछली जिन्दगी से जुड़ा है, मुझसे और यामिनी से जुड़ा है। वो यहाँ तक सही थी लेकिन इसके अलावा उसने जो कुछ समझा और सोचा वो हर लिहाज से गलत था।
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