ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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यामिनी से बात करने पर उसने बताया कि वो मुम्बई में है और अपनी बेटी साक्षी से मुझे मिलवाना चहाती है। ये उसका चौथा जन्म दिन है और इस बार उसका परिवार यहाँ मुम्बई में ही सैलिब्रेट करना चाहता है, वो कुछ 2 महीनों के लिए यहीं मुम्बई में रहेगें। ये सब तो वो बातें थी जिनका मुझसे कोई मतलब नहीं था, लेकिन आखिर में उसने झेंपते हुए एक ऐसी बात कही जिसका अन्दाजा भी मुझे नहीं था।
जिसे सुनकर समझ आया कि पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाना किसे कहते हैं? थोड़ी देर के लिए दिमाग ही सुन्न हो गया था मेरा।
‘अंश मैं तुम दोनों की एक तस्वीर लेना चाहती साथ में।’
‘लेकिन ये इतना जरूरी क्यों हैं?’ मैं बस कैसे भी उसे इस वक्त टालना चाहता था। अपने माथें पर बार बार हाथ फेरते हुए, सोनू के आस पास टहलते हुए मैं सारी बात कर रहा था। वहाँ दूसरी तरफ यामिनी कुछ चुप थी। कुछ देर में उसने मुँह खोला।
‘एक्चुअली.... मैं...।’ वो झेंप के साथ रुक गयी। ‘अंश मैं उसे उसके.... उसके अपने पिता के साथ देखना चाहती हूँ।’
लगा जैसे मेरे कानों में किसी ने तेजाब उडेल दिया हो!
मुँह तो खुला मेरा लेकिन बोल गुम थे।
‘क्या कह रही हो तुम?’
उसकी झेंप किसी अपराध में लिपटी हुई थी और उसी में लिपटे लफ्जों के साथ उसने मुझे बताया कि जिस वक्त उसने मुझे छोड़ा था उस वक्त वो प्रेग्नेन्ट थी और साक्षी वही बच्ची है।
मैं सुन्न हो गया।
‘....साहिल को इस बारे में कुछ नहीं पता। वो उसे अपनी ही बेटी समझता है।’
‘यामिनी मैं समझ नहीं पा रहा कि... कि तुम्हें चाहिये क्या?’ अब मेरे माथे पर भी पसीने की बूँदें थीं।
‘नहीं! मुझे कुछ नहीं चाहिये!’ उसने यकीन दिलाया ‘जिस दिन से साक्षी मेरी जिन्दगी में आयी है, पता नहीं मुझे क्या हो रहा है? .....मैं साहिल से प्यार करती हूँ, खुश हूँ उसके साथ लेकिन....... लेकिन...। तुम बस एक बार उसे देख लो।’ उसने जोर दिया।
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