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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

96

सुबह साढ़े दस बजे।


मैं उसके फ्लैट में दाखिल हुआ। वो यहाँ भी नहीं था और ना ही एजेन्सी में। सुबह से ही मैं उसे कॉल लगा रहा था और वो या तो मेरी कॉल काट रहा था या अनदेखी कर रहा था। यहाँ तक कि जिया को भी पता नहीं था कि वो कहाँ है? जिया सिर्फ इतना ही बता सकी कि आज संजय अपने समय से बहुत पहले बिस्तर छोड़ चुका था और जाने से पहले उसने आज पहली बार ईश्वर के सामने सिर झुकाया।

इससे पहले कि मैं कोई अन्दाजा लगा पाता, मेरा फोन झनझना उठा।

‘व्येहर द हैल आर यू?’ मैंने कॉल रिसीव की।

‘तू कहाँ है?’

‘तुम्हारे घर!’

‘और मैं तेरे।’ दूसरी तरफ वो हँस रहा था और इस तरफ मेरी बौखलाहट हद पर थी। ‘गैस व्हाट?’

‘क्या?’ मैंने थोडे डरते हुए पूछा।

‘वो मान गया!’ फिर वही बेवजह खुशी। मेरे लिए जिया के सामने खुल कर बात करना मुश्किल था। मैंने एक बोझिल सी मुस्कुराहट के साथ हाथ हवा में उठाकर जिया को इशारा किया कि मैं जा रहा हूँ।

‘कौन मान गया? क्या मान गया?’

‘उसका बाप!’

सारी रात जिन ख्यालों ने मेरी नींद उडा रखी थी वो लाजमी थे। संजय ने वाकई कुछ बेतुका कर दिया था। जैसे-जैसे दूसरी तरफ उसके बोल फूट रहे थे इस तरफ मेरे चेहरे पर शिकन बढ़ती जा रही थी। मैं आँखें जोर से मींच लीं। अब मेरे हाथ में भी कुछ नहीं था।

मैं हमेशा ही संजय को एक चालाक और डरपोक किस्म का इन्सान समझता रहा, खासतौर पर तब जब बात उसके बिजनेस पर आ जाये लेकिन उस दिन उसने साबित कर दिया कि आखिर उसमें भी हिम्मत है। सोनाली के पिता से उसका हाथ माँगना वो भी मेरे लिए! ये तो वाकई जानलेवा हरकत थी! जिस तरह प्रीती के पिता को मैं नापसन्द था वैसे ही राय साहब भी मुझसे नफरत ही करते थे लेकिन ये प्रीती के पिता से ज्यादा खतरनाक थे... संजय के लिए तो बहुत ही। मैं अपना कमाया सब कुछ लुटा देने को तैयार था लेकिन उसके लिए अपना कारोबार अपनी जिन्दगी से भी कीमती था।

मुझे कोई अन्दाजा नहीं था कि क्या कह कर, क्या कर के उसने राय को राजी किया होगा अपनी एकलौती बेटी को एक फ्लर्ट के हाथों सौंप देने पर।

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