ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘मैंने कभी नहीं किया....’ कुछ सोचकर मेरी आँखें बारीक हो गयीं। ‘...मैंने चाह कर तो नहीं किया। उसने मुझे मजबूर कर दिया खुद से प्यार करने पर।’ मैं ये कह कर उसकी तरफ पलटा, वो अपनी जगह पर नहीं था। वो बालकनी से मेरे बेडरूम की तरफ जा रहा था। दरवाजे पर पहुँच कर उसने किसी का हाथ खींचकर उसे बाहर निकाला।
‘तुम अब तक यहीं हो?’ मैं हैरान हो गया!
सोनू अब तक वहीं थी ....मेरी और संजय की बातें सुन रही थी। हो सकता है कि संजय की ही प्लानिंग हो। उसने एक बार नाराजगी से मेरी ओर देखा मानों पूछ रही हो कि ऐसा क्यों किया मेरे साथ?
उससे रू-ब-रू होना अब मेरे लिए और मुश्किल था। मैंने नजरें चुरा लीं।
संजय ने उसके कान में कुछ कहा। उसे कुछ समझाया और वो चुपचाप वहाँ से चली गयी। बिना मेरी तरफ देखे, बिना कुछ कहे।
मैं संजय की कही कोई बात नहीं सुन सका लेकिन उसकी आखिरी लाइन शायद यही थी-कल मैं तुम्हारे घर आता हूँ।
संजय कुछ देर थका, उलझा सा बालकनी के दूसरे कोने में बैठा रहा। कुछ सोच रहा था... कोई फैसला लेने की कगार पर खड़ा सा... कहीं दूर नजरें किये... बस चुपचाप। बैचेनी से काँप से रहे हाथों से उसने एक सिगरेट जलायी और कदम बाहर की ओर बढ़ा दिये।
‘तुम कल उसके घर जो रहे हो?’ मैंने टोका।
‘हाँ।’
‘क्यों?’
‘वो जानना तुम्हारा काम नहीं है।’ धुएं का एक गुबार छोड़ते हुए-’लेकिन मैं तुझे एक सलाह जरूर देना चाहूँगा....उसे हर्ट मत करना।’
‘क्योंकि वो झेल नहीं पायेगी?’ मैंने उसे एक वजह सुझायी।
‘नहीं... क्योंकि तू नहीं झेल पायेगा।’
जिस तरह वो मेरे पास से गया, मुझे थोड़ी घबराहट हो गयी। उसके हाव भाव से लग रहा था कि वो वाकई कुछ ऐसा करने को है जो उसके लिए सही नहीं।
सारी रात मैं उसकी चिन्ता में सो न सका लेकिन कभी कभी जहर से जल्दी हमें हमारा डर मार देता है। कभी कभी कल्पना, सच्चाई से ज्यादा भयानक होती है।
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