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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

91

एक बरसती शाम - 5.30 बजे।


मैंने कार पार्किंग में लगायी कि मेरा फोन फिर बजने लगा।

‘आ रहा हूँ!’ मैंने चिढ़कर, थकी सी आवाज में कहा और कॉल काट दी।

करीब 15 दिनों बाद मैं मुम्बई वापस लौटा था और बजाय इसके कि अपने फ्लैट में जाकर आराम करता, संजय से मिलने पोर्टिको आया था। ये सोच कर बहुत हँसी आ रही थी कि एक नियाहत ही तेज तर्रार सा खिलाडी जो अपने ही खेल में फँस चुका था, एक ऐसे इन्सान से मदद की गुहार लगा रहा था जो कि खुद उसकी ही नजर में नासमझ इन्सान था।

संजय और सोनाली ने आखिरकार ये मान ही लिया कि उनका प्लान अच्छे से ज्यादा बुरा था। बेशक! लोगों ने मेरे और सोनू के रिश्ते को सराहा। सोनू की उस कोशिश ने हमारे प्रतिद्वंदियों को तो चुप करा दिया था लेकिन अब राय साहब को आश्वस्त करना कि मैं उनकी बेटी के साथ साथ कोई खेल नहीं खेल रहा, नामुमकिन हो गया। राय साहब को इस बात से बड़ी गहरी चोट पहुँची थी कि उनकी प्यारी बेटी मीडिया के छापने का एक मुद्दा बन गयी। ये उनकी शान के खिलाफ था कि उनकी आँखों का एकलौता तारा एक ऐसे मॉडल को डेट कर रही है जिसकी दुकान बस किसी भी वक्त बन्द हो सकती है।

एक-एक कर उन दोनों ने अपनी सफाई दे दी थी लेकिन राय साहब को समझा न सके, और समझा भी कैसे पाते? करीब 50 साल के हो चुके राय साहब को बस अपनी ही समझ पर भरोसा था। वो अपनी ही नजर से दुनिया को देखते थे और उनका ये नजरिया जैसा भी था उसे बदलने की हिम्म्त किसी में नहीं थी।

जिस तरह संजय मेरी जिन्दगी में अन्दर तक घुल चुका था उसी तरह राय साहब भी संजय के बिजनेस में जड़ें फैला चुके थे। उनके एक इशारे पर हमारे न जाने कितने ही नये कान्ट्रेक्ट शुरू होने से पहले ही खत्म हो गये। कुछ चले आ रहे कान्ट्रेक्ट भी खतरे में थे। यहाँ तक कि उन्होंने उस रकम को वापस लौटाने का वक्त भी कम कर दिया जो कुछ महीनों पहले संजय ने उनसे उधार ली थी अपनी एड एजेन्सी शुरू करने के लिए।

वो हमें अपनी भाषा में चेतावनी दे चुके थे। संजय ने अपना कारोबार एक बड़े खतरे में डाल दिया था।

मेरे सामने बैठा वो चुपचाप सिगरेट फूँके जा रहा था। मैंने इससे पहले उसके चेहरे इतनी थकान और चिन्ता नहीं देखी थी और ना ही कभी इस कदर हँसा था मैं उस पर!

‘हो गया?’ उसने गम्भीर से चेहरे पर थोड़ा गुस्सा लाते हुए मेरी तरफ देखा।

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