लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘तो फिर तुम ये बयान क्यों दे रही हो कि हम साथ हैं? हमारा वो रिश्ता तो नहीं है।’ काफी मुश्किल था अपनी बात को इस सवाल पर खत्म कर देना... मेरे लिए तो बहुत मुश्किल था लेकिन उसने कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं की। न जाने क्यों?

‘अंश शायद आपने पूरा आर्टिकल पढ़ा नहीं है। वो लोग हमारी कुछ पिक्स और क्लूज को गलत तरह से पेश कर रहे हैं। एक गलत कहानी बना रहे हैं आपके बारे में।’

‘कोशिश करने दो उन्हें, वो सच को बदल नहीं सकते।’

‘हाँ लेकिन सच ये भी है कि हम उन्हें रोक नहीं सकते और ना ही कोई हमारा यकीन करेगा अगर हम इनकार करते भी हैं।’

‘और तुम्हारी ये स्टेटमेन्ट कोई चेन्ज ला सकती है?’ काफी बचकानी सी सोच लगी मुझे। वो एक पल को चुप थी।

‘हो सकता है।’ अधूरे से यकीन से उसने कहा। फिर वही बचपना!

‘सोनू,चलो एक बार को मान लिया कि तुम उन्हें चुप करा दोगी लेकिन तुम्हारे डैड का क्या? क्या कल वो कुछ नहीं पूछेंगे हमसे?’

‘तब हम कोई रास्ता निकाल लेंगे ना! मैं अपनी स्टेटमेंन्ट कल बदल भी तो सकती हूँ।’

मेरी इमेज बचाने के लिए सबसे ज्यादा सोनाली राय ने हाथ पैर मारे हैं ये बात पूरी दुनिया को पता थी और लोग बस अटकलें लगा रहे थे। उसके पीछे की वजह की जगह वो कुछ परेशान सी थी। वो अच्छे से जानती थी कि उसने क्या किया है और कहाँ फँस गयी है। उसे कुछ कहने या समझाने की गुन्जाईश ही नहीं बची। आखिरकार मेरी आवाज में भी थकान आ गयी।

‘मुझे तुम्हारा तरीका ठीक नहीं लग रहा सोनू।’

‘यकीन करो अंश, मैंने वही कहा जो मुझे सही लगा।’

‘खैर, अब तुम ये सारा मामला अपने संजय भइया और अपने डैड से जरूर क्लियर कर लेना, प्लीज।’ मैं उसे इस बबाल से दूर रखने में नाकाम रहा।

मैंने, अपने और सोनू के बीच हुई बातचीत संजय को खुद भी सुना दी। उसके लिए ये सब निस्सार था लेकिन मेरे लिए नहीं। कम से कम इस तरह मैं उस लड़की की आवाज तो सुन सका जिसकी कमी दिनों से चली आ रही थी।

उसी दिन सोनू ने भी संजय को सारी कहानी सुनायी और किसी तरह राजी कर लिया कुछ दिन और चुपचाप झेलने के लिए। उसने वादा किया आगे चलकर वो किसी ना किसी तरह अपने पिता को भी मना ही लेगी।

मैं जानता था कि ये खेल इतनी जल्द खत्म नहीं होना है। मैंने संजय और सोनाली दोनों को इससे होने वाले नफे-नुकसान गिना दिये लेकिन उन दोनों ने मेरी नहीं सुनी। उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ देने को मैं भी बाध्य था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book