ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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मैंने तय तो किया था कि अपने नाश्ते के साथ ही सोनाली की मीठी आवाज सुनूँगा, सारे गिले-शिकवे दूर करूँगा, उसे समझाऊँगा कि मैंने उसे ठेस भी पहुँचायी तो किसी वजह से, लेकिन उसका गुस्सैल बाप शायद मुझ पर अपना गुस्सा उगलने के लिए मरा जा रहा था।
मैंने जूस के पहले घूँट के साथ में सोनू का नम्बर लगाया लेकिन उससे पहले ही मिस्टर राय का फोन मेरे पास आ गया। काफी कड़वाहट भरी बातचीत हुई हमारे बीच... या यूँ कह लो कि वो बक रहा था और मैं सुन रहा था। काश कि मेरे पास देने के लिए कोई बढ़िया सा जवाब होता लेकिन सोनू से बात किये बिना कुछ कह भी तो नहीं सकता था। जब तक मोबाइल मेरे कानों पर था, उस तरफ से मुझे उसकी गुर्रायी आवाज में तरह-तरह के घटिया लफ्ज सुनने को मिलते रहे और इस तरफ मैं अपनी जिन्दगी के सबसे अद्भुत सवाल का जवाब खोज रहा था - क्यों दुनिया की हर लड़की का बाप मुझसे इतनी चिढ़ रखता है?
चार मिनट की वो लगातार दी गयी स्पीच, बिना किसी पॉज या ब्रेक के! हाँ लेकिन उसमें कई सारी चेतावनियाँ जरूर थीं। अपनी भड़ास निकाल लेने के बाद उसने कॉल खुद ही काट दी। फिर मुझे सोनू का नम्बर लगाने का मौका मिला।
उसके लिए मुझसे दूर रहना ही उचित था। मोबाइल फिर से मेरे कान पर था और दूसरी तरफ बैल बज रही थी। आज कई दिन बाद मैं उसकी आवाज सुनने वाला था, मुस्कुराहट तो यूँ ही आ गयी चेहरे पर। डर था कि न जाने आज वो ही पुरानी सोनू से बात होगी या उस नयी, प्रेक्टिकल सोनाली राय से.... लेकिन वहाँ फोन उठाने पर कोई और ही थकी और जख्मी सी आवाज सुनायी दी।
‘हैलो।’ बेहद थके से लहजे में उदास सा सिर्फ एक ही लफ्ज। मैंने बातचीत शुरू करने से पहले अपना सारा धैर्य समेटा।
सोनू को मेरे कॉल का ही इन्तजार था। उसे यकीन था कि मैं उसे आज तो कॉल करूँगा ही।
सोनू ने ये सारे रूमर्स सिर्फ मेरा ध्यान खींचने के लिए फैलाये हैं.... मेरी ये सोच गलत साबित हुई।
‘बाजार में सिर्फ एक हम ही मीडिया से नहीं है अंश, कुछ और लोग भी हैं। हम उन्हें इस तरह की खबरें फैलाने से नहीं रोक सकते।’
‘लेकिन तुम उन्हें सपोर्ट तो कर ही रही हो न?’
‘मैंने उन्हें कब सपोर्ट नहीं किया....’
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