ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
समीर जैसा निहायती मतलबी इन्सान मुझे अपने साथ चलने पर जोर दे रहा था, ये तय था कि इसके पीछे जरूर कोई ठोस वजह होगी लेकिन उसका मकसद इतना गिरा हुआ हो सकता है? ये बात अजीब थी।
‘तू मुझे क्या समझता है?’ मैं जगह से उठ गया।
‘अरे! भडक क्यों रहा है? दोस्त समझता हूँ और क्या?’ वो भी मेरे साथ खड़ा हो गया और मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया।
‘ओ! प्लीज शट् अप! ना तो मैं तुम लोगों के साथ आ रहा हूँ और ना ही किसी को पूछ रहा हूँ साथ आने के लिए, समझा?’
मैंने अपनी किताब ली और वहाँ से चलने लगा। मैं दो कदम ही बढ़ा था कि पीछे से समीर चिल्ला पड़ा।
‘बोल तो ऐसे रहा है जैसे खुद तो ये सब करता नहीं।’ उसने अपनी चिढ़ आखिर निकाल ही दी।
मैं उसकी तरफ पलटा।
‘क्या करता हूँ मैं?’ मैं उसकी आँखों को घूर रहा था।
‘छोड़ यार! सब जानते हैं कि तू क्या है!’ उसने इस तरह कहा मानों जैसे मैं इस लायक ही नहीं हूँ कि वो मुझसे बहस करे। उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी लेकिन मैं इस बात को यूँ खत्म नहीं करना चाहता था।
‘सब क्या जानते हैं मेरे बारे में?’
मनोज चुपचाप बैठा था लेकिन अब उसे भी खड़ा होना पड़ा।
‘कुछ नहीं अंश ये तो ऐसे ही बोलता रहता है। जाने दे।’ उसने हम दोनों के सीने पर हाथ रखकर हमें पीछे धकेला। मैंने एक कदम पीछे ले भी लिया लेकिन शायद समीर बात खत्म नहीं करना चाहता था।
‘सब जानते हैं कि तू क्या है कितना शरीफ बनने की कोशिश करता है! पिछले एक महीने से तू हमसे अलग थलग है क्यों? कहाँ बिजी रहता है आजकल? किसके साथ बिजी रहता है? यहाँ तक कि रविवार को भी!’
‘क्या कहने की कोशिश कर रहा है तू?’
‘मैं सिर्फ ये कहने की कोशिश कर रहा हूँ कि अगर एक ही वक्त में तू दर्जनों लड़कियों को डेट कर सकता है तो फिर एक और को डेट करने में हमारे सामने इतने नखरे क्यों झाड़ रहा है?’ दाँत पीसते हुए उसने कहा।
‘क्या बकवास कर रहा है तू!’ मैंने उसे धक्का दे दिया। ‘तेरी तरह लड़कियों के पीछे दुम हिलाते घूमने की मेरी आदत नहीं है!’
मनोज उस दिन हमारे बीच था नहीं तो उस दिन हमारे बीच एक अच्छा खास झगड़ा तय था। समीर की बातों से मुझे इतना गुस्सा आ गया था कि अगर वो दो-चार बात और बोलता तो उस पर मेरा हाथ उठ जाता।
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