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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

8

दोपहर


स्कूल की बिल्डिंग की छत पर बैठे मैं, मनोज और समीर के साथ आने वाले इम्तेहान की तैयारी कर रहा था। किताब के पन्नों से एक बार मेरी नजर उठकर समीर के चेहरे पर गयी, वो मनोज से इशारे में कुछ पूछ रहा था।

मेरी नजर समीर के चेहरे पर एक सवाल के साथ रुक गयी।

वो कुछ झेंपा और फिर एक बनावटी इत्मिनान के साथ-

‘एक काम था तुझसे।’ मैं कुछ कह पाता इससे पहले- ‘देख मना मत करना।’

‘क्या?’

‘एक फिल्म लगी है, चलेगा?’

‘नहीं यार, घर में प्राब्लम हो जायेगी।’

‘लेकिन कैसे?’ उसने कन्धे उचकाये। ‘स्कूल बंक करके चलते है, किसी को पता नहीं चलेगा।’

‘नहीं तुम लोग जाओ, मुझे बंक नहीं करना है।’

‘यार कैसी बात कर रहा है तू? पहली बार कर रहे हैं क्या?’ मनोज ने कहा

‘नहीं मनोज...मेरे पास पैसे भी नहीं हैं।’

‘अरे वो हम कर लेंगे पहले भी कौन-सा तू अपने पैसों से जाता था। कुछ समय से तू कितना बोर हो गया है, हमें नहीं बतायेगा कि परेशानी क्या है?’ उसने मेरी किताब हाथ से ले ली।

‘कुछ नहीं लेकिन तुम दोनों को देखकर लगता है तुम्हें जरूर कोई परेशानी है।’ मैंने उन दोनों की तरफ देखा। मुझे पूरा यकीन था अपनी बात पर। मैं जानता था कि सब की तरह इन्हें भी मुझे लेकर कई गलतफहमियाँ हो गयी हैं। शायद आज ही वो दिन था जब उन्हें दूर करने का मौका मिलने वाला था।

मनोज ने मेरी बात पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया और किताब पढ़ने का नाटक करने लगा लेकिन समीर तो जैसे इसी पल का इन्तजार कर रहा था।

‘परेशानी तो नहीं है लेकिन...वो प्रीती की जो सहेली है न, उसकी बेस्ट फ्रेन्ड, उससे कुछ बात करनी थी।’

‘वो ही जिसे देखकर तेरा मुँह कड़वा हो जाता था?’ मैंने अन्दाजा लगाया।

‘हाँ, प्रीती तो मान नहीं रही थी इसलिए मैंने कल उसे ही ऑफर कर दिया। उसने हाँ कर दी, लेकिन वो मेरे साथ फिल्म नहीं चल रही। हम दोस्तों में शर्त लगी है कि मैं उसे फिल्म ले जाऊँ। मैं कहूँगा तो कोई नहीं चलेगा, और तेरी बात न प्रीती, न प्रीती की सहेली, कोई नहीं टालेगी। आइ एम श्योर!’

क्या बेहूदगी थी!

मुझे यकीन नहीं होता कि वो कभी मेरा करीबी दोस्त था।

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