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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

7

मेरी मम्मी की जान पहचान की एक टीचर जो मेरे स्कूल में पढ़ाती थी, उसने मेरी शिकायत, मेरे घर आकर, मेरे ही सामने की। पहली बार मेरे घर में मेरे बारे में कुछ ऐसा पता चला था जिससे मुझे लेकर मम्मी की सारी उम्मीद खत्म हो गयी। मैं उस वक्त वहीं था जब वो मेरे बारे में मनगढंत बक रही थी। मैंने अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा लेकिन उसे किसी ने नहीं सुना। मम्मी ने टीचर के सामने तो कुछ नहीं कहा लेकिन उसके जाते ही मेरे घर का पूरा माहौल बदल गया। मम्मी न जाने क्या सोचकर रोने लगी।

मेरा समझाना भी फिजूल था।

‘मम्मी आप क्यों रो रहे हो? मैंने कहा न ऐसा कुछ नहीं किया है मैंने। मेरा किसी के साथ ऐसा कुछ नहीं है, वो किसी दोस्त ने मजाक किया होगा।’

‘दोस्त? ऐसा कौन दोस्त है जो तेरी जिन्दगी बर्बाद करना चाहता है। ये हरकत किसी दोस्त की नहीं है। तू गलत चल रहा है। गति ने, रेनू ने मुझे पहले भी तेरी हरकतों के बारे में बताया था लेकिन मैंने नहीं माना।’

‘ममा ऐसा कुछ नहीं है आपको कैसे समझाऊँ? कैसे यकीन आयेगा आपको? मैंने कुछ नहीं किया।’

‘मुझे कुछ नहीं पता। तू को ऐजुकेशन में पढ़ रहा है। तेरा लड़कियों से बात करना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन तुझे सब वहाँ फ्लर्ट कहते हैं? ऐसा क्या किया है तूने? मैं क्या दिन-रात मेहनत इसीलिए कर रही हूँ कि तू इस तरह से अपना भविष्य खराब करे। अभी तेरी उम्र ही क्या हुई है? पूरा 18 का भी नहीं हुआ और अभी से इतना नाम कमा लिया तूने? मैं तेरा नाम स्कूल से कटवा दूँगी वर्ना खुद को सुधार ले! आगे दो बहनें है तेरी! तू उनके बारे में भी नहीं सोचता? तेरा ही चाल-चलन ऐसा होगा तो उनका क्या होगा?’

मम्मी मुझे डाँटती ही रहीं।

उन्हें कुछ भी समझाना मुमकिन नहीं था। मुझ पर से तो जैसे उनका भरोसा उठ गया।

मैं पढ़ाई में भी कुछ खास नहीं था, तो माँ को लगा कि अब तो मेरा पढ़ना बिल्कुल ही डूब गया। उनको इस बात से समस्या नहीं थी कि लड़कियाँ मुझे पसन्द करती हैं बल्कि इस बात से थी कि मैं लड़कियों के पीछे भाग रहा हूँ, बिगड़ गया हूँ, वगैरह-वगैरह।

उनकी तसल्ली के लिए मैं कुछ दिनों तक घर से स्कूल और स्कूल से घर तक ही सीमित रहा। मम्मी का यकीन फिर से जीतना था। शाम को जो एक चक्कर मेरा दोस्तों के साथ बाहर का लगता था, जहाँ मैं थोड़ा इन्जॉय कर लेता था वो भी खत्म हो गया। मैं कई दिनों तक किसी लड़की के पास से गुजरा तक नहीं और कोई गलती से मेरे पास आ जाती तो मैं वहाँ से हट जाता। जानते हुए भी कि मेरी सारी कोशिशें सूखी जमीन पर ओस की बूँद से ज्यादा नहीं है मैं कोशिश करता रहा।

सर्दियाँ बीत चुकीं थीं। बर्फ, कोहरा, ठण्डी हवा गुनगनी धूप में बदलने लगी। भारी ऊनी कपड़ों का वक्त तो बीत गया था मगर फिर भी सूरज की किरनें अब तक नर्म ही थीं।

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