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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

6

मेरे 18वें जन्म दिन की सुबह।


समीर और मैं स्कूल में दाखिल हो रहे थे और महसूस हुआ कि अध्यापक, माली, सहपाठी मैं जिसके भी बगल से निकल रहा हूँ वो मुझे घूर रहा है। मैं हर नजर का केन्द्र था। किसी की नजर में शिकायत, किसी की नजर में दाद और किसी की नजर में नाराजगी।

‘इन सबको हुआ क्या?’

जिस सवाल को मैं अपने साथ लिये चल रहा था उसका जवाब मुझे अन्दर कॉरीडोर पर मिला। एक अच्छी खासी भीड़ जमा थी वहाँ बच्चों की। एक दीवार के आस पास जमघट लगाये, सब बड़े चाव से कुछ इस तरह पढ रहे थे जैसे इनके एक्जॉम का रिजल्ट यहाँ लगा हो।

समीर और मैं भी उस तरफ बढ गये और जो देखा उसे देखते ही रह गये।

किसी ने कॉरीडोर में सुनहरे रंग से बड़े बड़े शब्दों में ‘हैप्पी बर्थडे अंश’ लिखा था।

‘किसने किया यह?’ उन बड़े-बड़े अक्षरों की तरफ देखते हुए, समीर और मेरे मुँह से एक साथ निकला!

लड़कियाँ मुझ पर हँसती हुई गुजर रहीं थीं। भीड़ से निकलता हर बच्चा एक बार मेरी तरफ जरूर देखता। क्या मालूम इन्ही में से किसी ने इस हरकत को अन्जाम दिया हो। मैं वहाँ से निकलकर क्लास को चल दिया। मैं एकान्त में जाकर इस बारे में सोचना चाहता था लेकिन वहाँ भी एक अलग सी भीड़ जमा थी। वजह? मेरी क्लास का व्हाईट बोर्ड, जो कई खूबसूरत गुलाबों और खूबसूरत लिखावट में लिखें दर्जनों खूबसूरत लफ्जों से सजा था।

‘अंश, क्या इस बारे में कुछ कहना नहीं चाहोगे?’ मिसेज चड्ढा! मेरी क्लासटीचर! वो इस छोटी सी भीड़ से बाहर आती हुई बड़े इत्मीनान से बोलीं। इनकी नजरों में तो मैं हमेशा ही खटकता था। उन्हें यहाँ देखकर कुछ देर मैं और समीर सन्न खड़े रह गये।

हालांकि ये एक फ्री पीरियड था लेकिन फिर मुझे मिसेस चड्ढा के कई सारे लैक्चर सुनने पड़े। उन्होंने पैन्तालिस मिनट के उस वक्त में मुझे ना जाने कितना कुछ रटा दिया। कितना कुछ पढ़ा दिया। उफ!

जैसा कि खुद उन्होंने ही कहा था मैं और मेरे दोस्तों ने भरपूर कोशिश की उस इन्सान को ढूँढने की जिसने दीवार और क्लास को खराब किया था लेकिन नाकामयाब रहे थे और अब बारी थी एक और लैक्चर लेने की, प्रधान अध्यापक से।

ये महोदय भी मेरे बारे में फैली कहानियों से काफी परेशान थे। स्टाफ रूम में उनके सामने हाथ बाँधे खड़ा मैं, उनके मुँह से कई सारी बातें सुनने का इन्तजार कर रहा था लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा। सिर्फ एक बात कही कि मैं खुद को सुधार लूँ नहीं तो वो मुझे स्कूल से निकाल देगें। मैं उनके सामने सफाई में कुछ कह पाता इससे पहले ही उन्होंने मुझे बाहर जाने की इजाजत दे दी।

कसूर मेरा नहीं था लेकिन सजा मुझे ही मिली। कॉरीडोर से लेकर क्लास तक की सफाई उस दिन मुझे ही करनी पड़ी। काश! वो इन्सान बस एक बार मेरे सामने आ जाता!

समस्या यहाँ भी खत्म हो जाती तो मुझे शिकायत ना होती लेकिन यहाँ से एक समस्या और शुरू हो गयी।

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