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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

5

इसी तरह, दोपहर 2.15


ये फ्री पीरियड था। एक पीरियड जो हमें हमारी पसन्द के साथ छोड़ देता था। ज्यादातर बच्चे आपस में बातें करते हुए बाहर टहल रहे थे, कुछ जो किताबों से बाहर आना ही नहीं चाहते थे वो किताबों में ही गुम थे और कुछ खेल में। मेरे लिए ये एक बेहतरीन माहौल था-शान्त, एकान्त।

क्लास की सबसे आखिरी कोने की कुर्सी पर मैं अकेला था....या शायद वो भी थी मेरे साथ। उसके खूबसूरत चेहरे पर मेरी आँखें खो चुकी थीं लेकिन मैं अब भी कहीं चूक रहा था। मेरी उँगली के पोर ने आँखों को छोड़कर जैसे उसके होठों को छुआ-

‘ये कितनी खूबसूरत है!’ एक आवाज ने मेरा ध्यान बंटा दिया। मैं पीछे पलटा।

‘हाय प्रीती।’

‘ये कहीं है?’ उसकी मुस्कान में खुशी से ज्यादा हैरानी थी।

‘सिर्फ मेरे ख्यालों में।’ मैं तस्वीर उठाकर एक तरफ रख रहा था लेकिन उसने अपने हाथों में ले ली।

‘वाओ! तुम्हारी कल्पना का तो जवाब नहीं! कोई नहीं मानेगा कि ये सच में नहीं है। जिन्दा लग रही है।’

‘थैंक्स।’

‘तुम्हें इस सब में कोई इनाम मिला है कभी?’

‘हाँ। एक दो बार।’ मैंने जवाब दिया।

‘बस?’

‘हाँ बस, मेरे घरवालों को ये सब पसन्द नहीं है उनके लिए ये सब फालतू काम है। उनके लिए मेरी पढ़ाई ज्यादा जरूरी है।’

‘तो फिर और ज्यादा मेहनत करो। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। ये लड़कियों के चक्कर मे क्यों रहते हो?’

प्रीती वापस उसी जगह पर आ रही थी।

‘प्रीती, तुमने देखा मुझे किसी के साथ टाइमपास करते हुए या टाइम वेस्ट करते हुए?

‘नहीं। एक्चुली मैं जानती हूँ कि ये सब सच नहीं है।’ उसने तस्वीर मेज पर रख दी और गहरी दिलचस्पी के साथ- ‘अच्छा, तुम्हें पता है सब तुमको घमण्डी समझते हैं।’

‘क्या? क्यों?’ मुझे हँसी आ गयी।

‘बीकॉज यू लुकस डैम गुड! और सब कहते हैं कि तुम खुद पर इतराते हो।’ कोहनियों को घुटनों पर टिकाये, थोड़ी गुम से लहजे में- वैसे... पहले मैं भी यही समझती थी।’

‘अच्छा! और?’ मैंने हैरानी से पूछा।

‘और हाई फाई और लापरवाह, वगैरह वगैरह !’

‘नहीं, मैं इतना हाई फाई भी नहीं हूँ। पापा करीब 5 साल पहले गुजर गये थे। अब तो उनका बनाया हुआ मकान ही बाकी रह गया है हमारे पास।’

‘हाँ अंश, देखा है मैंने। काफी खूबसूरत है।’

‘और अगर कम बोलने की वजह से ऐसी बातें फैल गयी हैं तो ये ही कहूँगा कि ये मेरी आदत है। मुझे ज्यादा बात करना आता ही नहीं।’

‘तो अंश अब भी बात होती है तुम्हारी रमा दीदी से? अब तो वो स्कूल नहीं आती।’

‘हाँ बोर्ड एक्जाम की तैयारी कर रहे हैं सभी सीनियर! कभी-कभी मिलती हैं आते-जाते। उसका एक नया बॉयफ्रेन्ड बना है।’

‘तो तुमको बुरा नहीं लगता?’ उसने नाक सिकोड ली।

‘नहीं ये तो अच्छी बात है, वो वहाँ खुश है और मैं यहाँ।’

‘सब सही कहते हैं अंश। तुम फ्लर्ट ही हो अंश।’ वो मुझ पर हँसती हुई वापस चली गयी।

फ्लर्ट ! शुरूआत में मुझे भी इस नाम से थोड़ी दिक्कत थी,, फिर आदत हो गयी। स्कूल में जब तक रहा इस नाम के चलते काफी दिक्कतें आयी। किसी को कोई भी सफाई दे कर कोई फायदा नहीं था इसलिए मैंने कोई खास क्लियर करने की कोशिश भी नहीं की। ऐसा करने की एक वजह ये भी थी कि अब तक किसी ने ऐसा कुछ नहीं किया था जिसका मुझ पर वाकई असर पड़ता, लेकिन एक दिन ऐसा भी हो गया।

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