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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

 

4

इतना सब होने के बाद भी प्रीती और कुछ एक-दो लड़कियाँ अपनी जगह से नहीं हिलीं। ये सब चलते-चलते एक साल निकल गया। रमा के पुराने बॉयफ्रेन्ड को खुद से पता नहीं चल रहा था, तो हमने उसे ब्लैंक कॉल करके बता दिया। नतीजतन, रमा ने अपने पुराने बॉयफ्रेन्ड को छोड़ दिया लेकिन मुझे नहीं। उसके लिए स्कूल का सबसे क्यूट और सबसे हैपनिंग लड़का उसके साथ था, ये उसके लिए एक फैशन जैसा था। मैं फ्लर्ट बन गया हूँ और रमा के साथ मेरा अफेयर है, इससे ज्यादातर लड़कियों का दिल दुखा था, प्रीती का भी। वो कुछ बदल-सी गयी थी। फिर उसने एक बार आकर मुझसे रमा के बारे में सवाल-जवाब भी किये और मुझे ये कहकर डाँटा भी, कि मैं खुद से ज्यादा उम्र की लड़की के साथ क्यों हूँ?

‘मैं तुमको एक अच्छा इन्सान समझती थी अंश, लेकिन तुम... तुमको रमा दीदी ही मिली? उसकी उम्र पता है?’

‘इससे क्या फर्क पड़ता है?’ मैंने लापरवाही से कहा।

‘तुमको कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो तुमसे बड़ी है? छिः! तुम सच में वो ही हो अंश, जो लोग तुमको कहते हैं!’

‘तो इससे तुमको क्या?’ मैं चिढ़ सा गया।

‘कुछ नहीं! बस ये पूछना चाहती थी कि खुद से बड़ी लड़की के साथ क्यों इन्वोल्व हो? कोई और ऑप्शन नहीं था क्या?’

‘मैं उसके साथ इन्वाल्व नहीं हूँ मैडम! हम बस अच्छे दोस्त हैं। वो मेरी पढ़ाई में भी मदद करती है। उसके नोट्स मेरे काम आ रहे हैं।’

‘तो वो ये सब क्यों कह रही है कि तुम बॉयफ्रेन्ड हो उसके और तुम बहुत मरते हो उस पर!’

‘मुझे नहीं पता, उसे खुशी होती होगी ऐसा कहकर।’

‘तो तुम क्यों हो उसके साथ?’ वो झल्ला कर बोली।

‘आई थिंक कि ये तुम्हारी परेशानी नहीं है प्रीती, कि मैं किसके साथ हूँ।’

‘हे यू ईडियट! तुमको लोग गलत कहते हैं तो मुझे बुरा लगता है। दुःख होता है...’

‘तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? कुछ समय बाद उसका स्कूल खत्म हो जायेगा और साथ में हमारी दोस्ती भी, उसे कोई नया बॉयफ्रेन्ड मिल जायेगा..’

‘और तुम्हारा क्या अंश?’ उसके चेहरे पर अचानक फ्रिक आ गयी।

‘तुम मेरी चिन्ता करना छोड़ दो, प्लीज! इट्स इरिटेटिंग टू मी !’

‘ठीक है, कोशिश करूँगी।’

उस दिन की बहस के बाद प्रीती का स्वभाव वाकई बदल गया। वो उदास रहने लगी। उसके पागलपन की वजह से लगभग पूरे स्कूल में उसका मजाक बन गया था। मुझे लगा कि मैं उससे कम से कम दोस्ती तो कर ही सकता हूँ, आखिर काफी दुःख भी तो पहुँचाया था उसे। उसने बहुत खुशी से ये नया रिश्ता स्वीकार कर लिया।

उसके लिए ये एक मौका था मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने का और मुझे जानने का। उसे जब भी मौका मिलता वो मेरे पास चली आती थी।

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