लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

युवा सपनों की उम्र। चाहतों की उम्र। क्रोध की उम्र। एक दौर जहाँ इन्सान आसानी से आपा खो देता है। जिस उम्र में मैं था उस उम्र के बच्चों में गुस्सा होता ही है। इस उम्र में बच्चे खुश तब रहते है जब उन्हें हर तरफ से खुशी मिले। दोस्तों के साथ, घर में। इस उम्र में उनको आजादी चाहिये, खुशी चाहिये। वो अपने सपनों की दुनिया से बाहर नहीं आना चाहते। वो चाहते हैं कि उनकी हर इच्छा पूरी हो, हर जरूरत पूरी हो। जिनको ये सब नहीं मिलता उनको कम से कम आजादी और दोस्त तो चाहिये ही। मेरे पास इनमें से कुछ नहीं था। बस एक जिम्मेदारी-सी रहती थी मेरे सर पर, जिसके चलते मैं थोड़ा चिड़चिड़ा हो गया था। मुझे उस वक्त दोस्तों और घर वालों का साथ चाहिये था लेकिन वो भी पूरी तरह मेरे पास नहीं था।

स्कूल पूरा करते-करते समीर की दोस्ती में जलन-सी घुल गयी। अब हम बस कॉमन फ्रेन्ड्स थे। मनोज अब मेरा ज्यादा अच्छा दोस्त था। मनोज की शक्ल सूरत अच्छी नहीं लेकिन उसकी दोस्ती अच्छी थी। मैं उस पर यकीन कर सकता था।

समीर का बर्ताव स्कूल में ही बदल गया था। वो अमीर घर से था उसके पास पैसा और वक्त दोनों थे उड़ाने को, लेकिन जो वो मुझसे चाहता था वो मैं उसके लिए कभी कर नहीं पाया। मेरे लिए करियर ज्यादा जरूरी था उसके लिए एन्जोयमेन्ट और लड़कियाँ! वक्त ने एक गहरी लकीर हमारे बीच खींच दी लेकिन वो अब भी मेरा पड़ोसी था इसलिए उससे नाता पूरी तरह ना टूट सका।

समीर की शक्ल-सूरत भी अच्छी थी लेकिन मुझसे उसे ना जाने क्या किलस थी? हमेशा ही मुझसे जलता रहा। इस असीम जलन की वजह हमारा वो मॉडल हन्ट भी था जिसकी बदौलत मैं आज कुछ हूँ।

वो मॉडल हन्ट, जिसका पार्टीसिपेशन फार्म खुद समीर ने मुझे लाकर दिया था।

ये जून था। हमारे बोर्ड एक्जॉम खत्म हुए दो महीने हुए थे और मुझे किसी छोटी मोटी जॉब की तलाश थी। एक शाम समीर की कॉल आयी घर पर।

‘अंश! अभी फ्री है क्या?’

‘लगभग। कुछ काम था?’

‘कुछ है मेरे पास तेरे लिए। तू आ सकता है मेरे घर अभी?’

‘नहीं अभी तो नहीं आ सकता। मैं गति और रेनू को पढ़ा रहा था।’

‘अमम् ठीक है चल मैं ही आता हूँ।’

कुछ ही देर बाद समीर मेरे सामने बैठा था। उसने दो फार्म मेज पर बिखेर दिये।

‘ये क्या है?’ मैंने पूछा।

‘मैंने बताया था न कि मेरा एक भाई है जो मॉडलिंग ऐजन्सी में काम करता है। 15 की शाम को उनका एक मॉडल हन्ट है यहाँ। मैं सोच रहा था कि हम ट्राय कर लेते है।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book