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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

79

उसी रात।


पीठ के बल अपनी बालकनी की पॅराफीट वॉल पर निढाल से लेटे हुए, मैं गुम था सिगरेट के धुएं और अपने दिलोदिमाग के बीच छिडी जंग में। जो है और जो चाहिये के बीच छिडी एक जंग। पिछले कुछ महीनों में ही साबित हो चुका था कि ना तो मैं प्रीती के साथ खुश रह सकता हूँ और ना ही उसे खुश रख सकता हूँ। मेरा दिल कहीं और खोया था और मैं उसे अब सही जगह ढूँढ रहा था। मैं खुद की ही भावनाओं से लड़ रहा था। उन्हें हराने की कोशिश में कई बार हार भी गया लेकिन फिर भी मेरी कोशिश जारी थी उन्हें काबू करने की। चाहे वो प्रीती ही थी लेकिन मैं उसे खोना नहीं चाहता था। नहीं चाहता था कि एक और रिश्ते के कत्ल की तोहमत मेरे सिर आये।

मैं अपने दिल के दर्जनों सवालों के जवाब ही दे रहा था कि मेरे सेलफोन पर संजय का एक मैसेज आया। मुझे आने वाली सुबह उसके साथ शिकागो जाना था। हमारी टिकट कन्फर्म हो चुकी थीं। ये कुछ 16-17 दिनों का प्रोग्राम अचानक बना था। मैंने माँ को बताने के लिए फोन किया। उसी कॉल पर माँ ने मुझे फिर याद दिलाया कि प्रीती के पिताजी शादी की जल्दबाजी कर रहे हैं। मैं कोई जवाब न दे सका और फिर एक बार वही बात कह कर बात खत्म कर दी- मुझे अभी वक्त चाहिये।

मम्मी ने भी बात को ज्यादा तूल नहीं दी और बस एक बार प्रीती से वक्त माँगने की सलाह देकर कॉल काट दी।

उस रात भी मेरी कोशिश थी कि प्रीती को अपने हालात के बारे में कुछ समझा सकूँ लेकिन ना तो वो कुछ सुनने को तैयार थी ना समझने को। मेरे जवाब खत्म हो गये लेकिन उसके सवाल नहीं। हमेशा की तरह उस रात भी उसने बस यही साबित किया कि उसे चुनना मेरी गलती ही थी।

काफी वक्त से प्रीती की शिकायतें कम हो गयीं थीं मुझे लगा कि वो अब मेरे काम को समझने लगी है लेकिन वजह कुछ और थी। वो लोगों को जवाब दे-देकर थक गयी थी और सगाई के बाद मैं उसे उतना वक्त भी नहीं दे पा रहा था जितना पहले दिया करता था। इस सब की वजह कुछ हद तक उसके बेतुके सवाल और हमारी सगाई ही थी। मुझे लगा था उससे सगाई करके मैंने प्रीती को वो दे दिया है जो वो चाहती थी। इस बात का यकीन, कि मैं उसे चाहता हूँ। इस बात का यकीन कि मैं उसकी जिन्दगी में आऊँगा, उसके साथ रहूँगा, हमेशा के लिए। लेकिन मैं भूल गया था कि ये यकीन दिया नहीं जाता, निभाया जाता, महसूस कराया जाता है, जिया जाता है।

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