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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘कह सकते हैं।’ इत्मिनान से उसने कन्धे उचकाये। मानों कोई खास बात न रही हो।

सोनाली ने पहली बार अपने पिता के साथ काम किया था और वो भी मेरी खातिर। मेरी ईमेज को बचाने के लिए।

मैं उस सोनू को बहुत ज्यादा मिस कर रहा था जिसे पहली बार मिला था। इस बार वो एक फासला बनाने की कोशिश कर रही थी हमारे बीच और मैं भरसक कोशिश में था उसे फासले को खत्म करने की। मैं तरस रहा था उस प्यार और खुशी के लिए जो मुझे देखते ही उसकी आँखों में भर जाया करती थी। मैं रह रह कर जैसे बैचेन हो रहा था कि अब भी वक्त है अपनी की हुई भूल को सुधारने का वर्ना बहुत देर हो जायेगी।

जैसे मैंने उसमें एक बदलाव महसूस किया वैसे ही उसे भी महसूस हुआ। वो हैरान थी मेरी आँखों में अपने लिए एक प्यास देखकर और इस मुलाकात को और मुश्किल ना बनाने के लिए वो उसे नजरअन्दाज करती रही, करती ही रही।

हम करीब 2 घण्टे से साथ में थे, जो कब बीत गये मुझे पता ही नहीं चला था।

जब जब मैं उसे मिलता था, उससे बात करता था, उसे देखता था यहाँ तक कि उसके ख्याल आने पर भी अन्दर से कुछ महसूस होता था मुझे... और उस शाम मुझे एहसास हो गया कि वो क्या था? वो शाम मुझे बता गयी कि आखिर क्यों मेरे खुद से इतने सवाल थे? कहाँ अटक सा जाता था मैं? उस शाम ने सारे भेद खत्म कर दिये एक जरूरी रिश्ते और एक खास रिश्ते के बीच।

एक बार फिर मेरी साँसें मेरे दिल में चुभने लगीं थी। मैं बेवजह ही मुस्कुरा रहा था जब तक वो मेरे साथ थी और उसके चले जाने के बाद भी। लग रहा था जैसे मेरे कदमों के साथ उसके भी कदम उठ रहे हों। जैसे खामोशी से मुस्कुराते हुए वो मेरे साथ साथ चल रही है। ये बिल्कुल वैसा ही एहसास था जैसा कभी यामिनी के लिए हुआ करता था लेकिन क्योंकि एक मुद्दत से मेरे एहसास दबे कुचले से थे, मैं न तो उनको ठीक से समझ सका, ना उन पर यकीन कर सका।

मैंने बस खुद को समझा लिया ये कहकर कि और लड़कियों की तरह ही शायद सोनाली भी एक जरिया बनती जा रही है खुद को खुश रखने का।

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