ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘मुझे तो लगा था कि तुम मुझे कुछ बताओगी मेरी लाइफ के बारे में। आजकल मेरी खबर नहीं रखतीं?’ मैं फीका सा मुस्कुरा दिया
‘एक्चुअली पिछले कुछ दिनों से डैड के साथ बिजी थी तो... मैं उनकी बेटी और बेटा दोनों ही हूँ ना।’
पहली बार वो इतनी संजीदगी से बात कर रही थी। उसकी नजरें मुझसे ज्यादा आस पास के नजारे पर थीं। शायद साबित करना चाहती थी कि उसका ध्यान मुझ पर पूरी तरह है ही नहीं। हर दूसरी बार मुझसे नजरें मिलते ही वो या तो नजरें झुका लेती या मुस्कुरा देती।
जैसे ही हमें हमारा आर्डर मिला-
‘आपको नहीं लगता कि ट्रीट के लिए थोड़ी देर कर दी आपने?’
‘ट्रीट?’ मैं नहीं समझा।
‘आपकी सगाई की।’
‘ओह! नहीं। ये तो बस...।’
‘तो?’ उसने काफी दिलचस्पी से मेरी तरफ देखा। वो वाकई नहीं जानती थी कि ये सब मैंने क्यों किया?
‘वो... मैं तो बस.... मैं तो बस मिलना चाहता था तुमसे।’ मेरे लिए कहना जितना मुश्किल था उतनी ही आसानी से उसने नजरअन्दाज कर दिया। वो हमारे लिए मेज पर गिलास वगैरह लगाने में व्यस्त थी। मुझे अजीब लग रहा था लेकिन क्या?
‘तो अब डॉली चुपचाप है?’
‘डॉली? हाँ, मैंने कुछ सच उसके सामने रख दिये और....’
‘जाने दीजिये, कोई वजह तो होगी ही।’ उसने एक गिलास मेरे सामने भी रखा।
‘तुम कैसे कह सकती हो?’
‘बस जानती हूँ। मैं इस फील्ड में बस काम ही नहीं करती, वरना सच कहूँ तो आपसे भी ज्यादा जानती हूँ इस फील्ड को।’ मैंने तारीफ भरे भाव उसे उसे देखा। ‘अंश, आपको यहाँ आये 5-7 साल हुए होंगे और मैं इसे तब से देख रही हूँ जब से मैंने टाई सेट करना सीखा है।’
‘और इसी वजह से तुमने उन सारे रूमर्स को आराम से हैन्डल कर लिया?’
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