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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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पाँच महीनों बाद मुझे साँस लेने का वक्त मिला, वर्ना इस दौरान मैं किसी से ठीक से बात तक कर नहीं सका था। प्रीती की बातों में अब भी वही डर था और माँ की बातों में सवाल, लेकिन अब मुझे इस सब की आदत हो चली थी। मैं हर बार उन्हें एक ही जवाब दे देकर थक चुका था कि जब तक संजय की एड एजेन्सी शुरू नहीं हो जाती, मैं शादी नहीं कर सकता। इस शादी टालने की एक और वजह प्रीती के हालात भी थे जो दिन पर दिन बदतर होते जा रहे थे। उसके पास अब कुछ बाँटने या सुनने के लिए बचा था, बस कुछ सवाल बाकी रह गये थे। जो लड़की मेरे और यामिनी के रिश्ते ही हर छोटी बड़ी बात से वाकिफ थी उसे उस बारे में अब और ज्यादा बातें करनी थीं कि कहीं कुछ छूट ना गया हो। कहीं कुछ ऐसा ना हो जो मैंने उससे छुपाया हो। ना जाने वो इस दफन रिश्ते की कब्र में से क्या खोद निकालना चाहती थी। उसे पता था कि उसके सवाल और शक मुझे ठेस पहुँचाते हैं तब भी उसने सवाल करने नहीं छोड़े। यादें, जिनसे बचने के लिए मैं अपनी हदों से गिरा था वो उन्हें ही कुरेद रही थी।‘

शुरूआत में मुझे सिर्फ महसूस होता था लेकिन चन्द महीनों में उसने ये साबित भी कर दिया कि उसे मुझ पर यकीन नहीं है। उसने मुझे समझा दिया कि उससे शादी करने के से पहले मुझे एक बार फिर से सोचने की जरूरत है।

कौन आपके लिए कितना मायने रखता है या तो ये आप तब समझ पाते हैं जब उसे पा लेते हैं या तब जब उसे खो देते हैं। मुझे भी उसकी कीमत पता चली थी उसकी जिसे मैंने पा लिया था और... खो दिया था।

ऐसा वक्त मुझे काफी वक्त बाद मिला था जिसे मैं अपने तरीके से जी सकता था। मैं शिमला जा सकता था, अपने परिवार के पास.... मैं विदेश की किसी खूबसूरत जगह पर छुट्टियाँ मनाने जा सकता था.... मैं अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर सकता था लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। एक पूरी रात मैंने कैन्वस को रंगीन करने में बिता दी। जो कुछ मेरी यादों में ही रह गया था, उस वक्त को एक बार फिर उस कागज पर जिन्दा किया। काफी हल्कापन महसूस हुआ इससे मुझे लेकिन अब भी कहीं कुछ था जो मैं करना चाहता था।

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